उत्तराखंड की मिट्टी, बोली-भाषा से गहरा जुड़ाव रखने वाले एक हजार से अधिक लोकगीतों के प्रसिद्ध लोक गायक, कवि नरेंद्र सिंह नेगी को छठवां ‘केदार सिंह रावत पर्यावरण पुरस्कार’ देने की घोषणा हुई है। अपने लोक गीतों के जरिये वह उत्तराखंड के पर्यावरण एवं लोक-संस्कृति को आज भी समुन्नति के शिखर पर सहेजे हुए हैं। ‘चंडी प्रसाद भट्ट पर्यावरण एवं विकास केंद्र’ के मुताबिक, पुरस्कार आयोजन के लिए समारोह की तिथि इसी वर्ष तय की जाएगी। केदार सिंह रावत पर्यावरण पुरस्कार समिति के चयन मंडल की बैठक में निर्णय लिया गया कि वनों की रक्षा, पर्यावरण एवं लोक संस्कृति के संरक्षण में अभूतपूर्व योगदान को देखते हुए छठवां केदार सिंह रावत पर्यावरण पुरस्कार नरेंद्र सिंह नेगी को दिया जाए।
चयन समिति के सदस्य सचिव मंगला कोठियाल ने बताया कि समारोह की तिथि जल्द घोषित की जाएगी। चंडी प्रसाद भट्ट पर्यावरण एवं विकास केंद्र द्वारा पर्यावरण एवं वन संरक्षण के क्षेत्र में अतुलनीय कार्य करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के कार्यों को सम्मानित करने के उद्देश्य से वर्ष 2014 में इस पुरस्कार की स्थापना की गई थी। पुरस्कार के रूप में केंद्र की ओर से 21 हजार रुपये की नकद राशि, प्रशस्ति पत्र व अंगवस्त्र प्रदान किया जाता है। पूर्व में यह पुरस्कार पत्रकार रमेश पहाडी, विनोवा भावे के शिष्य रहे गांधीवादी कार्यकर्ता स्व. सोहन लाल भूभिक्षु, दशोली ग्राम स्वराज मंडल के सचिव रहे शिशुपाल सिंह कुंवर, नव जागरण महिला मंगल दल की अध्यक्ष रहीं सुशील भट्ट, डुंगरी पैतोली चिपको आंदोलन को नेतृत्व देने वाली गायत्री देवी, बछेर चिपको आंदोलन को नेतृत्व देने वाली कलावती देवी आदि को दिया जा चुका है।
अगर आप उत्तराखण्ड और यहाँ के लोक जीवन, समाज, जीवन-शैली-संस्कृति, राजनीति आदि के बारे में जानना चाहते हैं तो, या तो किसी महान-विद्वान की पुस्तक पढ़ लें या फिर नरेन्द्र सिंह नेगी जी के गाने/गीत सुन लें। उनकी श्री नेगी नामक संस्था उत्तराखण्ड कलाकारो के लिए एक लोकप्रिय संस्थाओं मे से एक है। नेगी जी सिर्फ एक मनोरंजन-कार ही नहीं बल्कि एक कलाकार, संगीतकार और कवि भी हैं, जो कि अपने परिवेश को लेकर काफी भावुक और संवेदनशील हैं।
नेगी जी का जन्म 12 अगस्त 1949 को पौड़ी जिले के पौड़ी गाँव में हुआ। उन्होंने अपनी जीवन-वृत्ति (कॅरियर) की शुरुआत पौड़ी से की। अब तक वे दुनिया भर के कई बड़े-बड़े देशों में अपनी गायकी की धाक जमा चुके हैं। गढ़वाल के इस मशहूर गायक के गानों मे मात्रा (क्वांटिटी) की बजाय गुणवत्ता/योग्यता (क्वालिटी) होने के कारण ही लोग उनके गानों को बहुत पसंद करते हैं। समय के साथ-साथ “गढवाल म्यूजिक इंडस्ट्री” में नये गायक भी शामिल हुए लेकिन नए गायकों की नई आवाज के होते हुए भी पूरा उत्तराखण्ड उनके गानों को उतने ही प्यार और सम्मान के साथ आज भी सुनता है। नेगी जी के गानों में अहम बात है, उनके बोल (लिरिक्स) और उत्तराखण्ड के लोगों के प्रति भावनाओं की गहरी धारा। उन्होंने अपने गीतों के बोल और आवाज के माध्यम से उत्तराखण्ड के सभी दुख-दर्द, खुशी, जीवन के विविध पहलुओं को दर्शाया है। किसी भी लोकगीत की भावनाओं और मान-सम्मान को बिना ठेस पहुँचाते हुए उन्होंने हर तरह के उत्तराखण्डी लोक गीत गाए हैं।
उन्होंने गायकी की शुरुआत गढ़वाली गीतमाला से की थी। यह “गढ़वाली गीतमाला” 10 अलग-अलग हिस्सों में है, जो अलग अलग कंपनियों से संबद्ध रही, जिससे नेगी जी को थोड़ी सी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा। उसके बाद उन्होंने अपनी कॅसेट्स को अलग नाम से रिलीज करना शुरू किया। उन्होंने पहली अॅल्बम का नाम रखा ‘बुराँस’। उन्होंने कई गढ़वाली फिल्मों में भी अपनी आवाज दी है, जैसे कि “चक्रचाल”, “घरजवाई”, “मेरी गंगा होलि त मैमा आलि” आदि। अब तक वह एक हजार से भी अधिक गाने गा चुके हैं। आकाशवाणी, लखनऊ से उनको 10 अन्य कलाकारों के साथ अत्यधिक लोकप्रिय लोक गीतकार की मान्यता मिल चुकी है। आज भी गढ़वाली और कुमाऊंनी समाज उन्हें अक्सर विदेशों में गाने के लिए आमंत्रित करता रहता है।