दुनिया भर में कोरोना से बचाव के उपायों को लेकर घरेलू मास्क और दूसरे मास्क के उपयोग पर बहस जारी है। इस बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा है कि मास्क पहनने से कोरोनो से बचाव के पक्ष में बहुत ज़्यादा सबूत नहीं मिले हैं। इसके बाद भी चीन, हॉन्गकॉन्ग सहित कई एशियाई देशों ने अपने यहां मास्क के प्रयोग को अनिवार्य किया है। इस बहस में कहा जा रहा है कि बहुत सारे संक्रमित लोगों में संक्रमण के लक्षण नहीं दिखे हैं, ऐसे में अनजाने रूप में फैलने वाले संक्रमण पर अंकुश लगाने के लिए मास्क ज़रूरी है। कोरोना से बुरी तरह प्रभावित अमरीका और ब्रिटेन जैसे देशों में भी मास्क का इस्तेमाल अनिवार्य कर दिया गया है।
मास्क के इस्तेमाल को लेकर भारत ने इससे पहले अलग नज़रिया अपनाया था, पहले सरकार की ओर से कहा गया था कि केवल संक्रमित लोगों को ही मास्क पहनना है। इस नीतिगत बदलाव और घरेलू मास्क के इस्तेमाल पर ज़ोर देने के पीछे एक महिला बायोकेमिस्ट की अहम भूमिका रही है. यह महिला वैज्ञानिक हैं 58 साल की शैलजा वी गुप्ता। शैलजा भारत सरकार में प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के ऑफिस में वैज्ञानिक हैं। उनका काम सरकार के लिए नीतियों को बनाना और तकनीक के बेहतर इस्तेमाल संबंधी सुझाव देना है।
शैलजा बताती हैं कि भीड़ भाड़ वाली जगह पर संक्रमण पर अंकुश के लिए घरेलू मास्क का उपयोग सही उपाय है। उदाहरण के लिए जो लोग झुग्गी झोपड़ियों में रहते हैं, उन्हें तो सस्ता और आसान उपाय चाहिए। ऐसे में घरेलू मास्क लोगों को संक्रमण से बचा सकता है। भारत में पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्वीपमेंट्स (पीपीई) की कमी है और सर्जिकल मास्क ख़रीदना हर किसी के लिए संभव नहीं है, ऐसे में शैलजा गुप्ता के मुताबिक़ घरेलू मास्क से लोगों को बचाने में मदद मिलेगी। शैलजा गुप्ता भारत के शीर्ष इंजीनियरिंग कॉलेज इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी की पूर्व छात्रा हैं। वह मुंबई के सबसे बड़े झुग्गी झोपड़ी वाले धारावी में आउटरीच ऑफ़िसर के तौर पर पर काम कर चुकी हैं। इस इलाक़े में उन्होंने ग़रीब तबके के बच्चों को सस्ते माइक्रोस्कोप से जीवाणुओं के बारे में जागरूक किया है।
चीन के बाद विगत महीनों में जब भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने लगा, तो शैलजा गुप्ता ने घर पर मास्क बनाने के तरीक़े का एक मैन्युएल तैयार किया और भारत की 22 आधिकारिक भाषाओं में उसका अनुवाद कराया। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में मास्क के इस्तेमाल से जुड़े शोध पत्रों के उल्लेख के साथ कोरोना संक्रमण के ख़िलाफ़ हर रणनीति में वह घरेलू मास्क को ज़रूरी हिस्से के तौर पर अपनाने की सलाह देती रहीं। शैलजा गुप्ता के मुताबिक़, घरेलू मास्क किसी भी रंग के नए या पुराने सूती कपड़े से बनाया जा सकता है। भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के. विजय राघवन कहते हैं कि फेस मास्क की ज़रूरत को लेकर शैलजा गुप्ता की सोच स्पष्ट रही है। उन्होंने अपनी टीम से एक प्रभावी मैन्युएल तैयार कराया। इस अभियान को आगे ले जाने को लेकर उनमें दृढ़ता भी थी, उनकी कोशिशों के चलते परिणाम साकारात्मक मिल रहे हैं।
इस बीच भारत सरकार ने यह भी कहा है कि देश के 27 राज्यों के क़रीब 78 हज़ार स्वयंसेवी समूहों द्वारा दो करोड़ घरेलू मास्क तैयार कर लिए गए हैं। नौ गुना सात इंच की साइज में काटे गए कपड़े में चार डोरियां लगाने भर से फेस मास्क तैयार हो जाता है। घरेलू मास्क को नियमित तौर पर साबुन और पानी से धोते रहना चाहिए। इसे फिर से इस्तेमाल करने लायक़ बनाना बहुत सस्ता है। दूसरी ओर प्लास्टिक फैब्रिक से बने डिस्पोजेबल सर्जिकल मास्क की क़ीमत दस रुपए है। डॉक्टरों और नर्सों के इस्तेमाल वाले एन95 मास्क की क़ीमत किसी दिहाड़ी मज़दूर के एक दिन की आमदनी से भी ज़्यादा 500 रुपए के क़रीब है। शैलजा गुप्ता कहती हैं कि भारत को जल्दी ही ऐसे एक अरब मास्क की ज़रूरत होगी। देश के एक मीडिया ग्रुप ने लोगों से अपना मास्क ख़ुद बनाने की अपील करते हुए मास्क इंडिया अभियान ही शुरू कर दिया है, जिसका श्रेय भी आधिकारियों के मुताबिक़, शैलजा गुप्ता को दिया जा रहा है।