”बीइंग वुमन’ की ओर से इस साल 27 अप्रैल 2020 को मेघा परमार को ‘स्वयं सिद्धा’ सम्मान से उत्तराखंड में समादृत किया जाना था, जिस पर उनकी सहमति भी समय से प्राप्त हो चुकी थी लेकिन कोरोना संकट के कारण यह राष्ट्रीय सम्मान समारोह स्थगित हो जाने से निकट भविष्य में समय अनुकूल होने के बाद उन्हे सम्मानित किया जाएगा।” : रंजीता सिंह, राष्ट्रीय अध्यक्ष, ‘बीइंग वुमन’
लगभग 26 वर्षीय ख्यात पर्वतारोही मेघा परमार हैं तो सिहोर (म.प्र.) लेकिन अपने प्रदेश की वह पहली ऐसी महिला हैं, जो एवरेस्ट फतह कर चुकी हैं। सीहोर के एक छोटे से गांव भोजनगर से निकलीं एवं अपने ऑर्गन डोनेट कर चुकीं, अपने पिता की इकलौती संतान मेघा एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने के साथ ही रूस के सबसे ऊंचे पर्वत एल्ब्रस और अफ्रीका के किलिमंजारो की सबसे ऊंची चोटी ‘उहुरू बिंदु’ को भी फतह कर चुकी हैं। उन शिखरों को छूने वाली वह अपने राज्य की पहली ऐसी बेटी हैं। ‘बीइंग वुमन’ की ओर से इस साल 27 अप्रैल 2020 को ‘स्वयं सिद्धा’ सम्मान से समादृत किया जाना था, जिस पर उनकी सहमति भी समय से प्राप्त हो चुकी थी लेकिन कोरोना संकट के कारण यह राष्ट्रीय सम्मान समारोह स्थगित हो जाने से निकट भविष्य में समय अनुकूल होने के बाद उन्हे सम्मानित किया जाएगा। रोमांच और साहस से भरीं मेघा की दुरूह पर्वत यात्राएं देश के लाखों, करोड़ों युवाओं की प्रेरणा स्रोत हैं, जो अपनी जिंदगी में खुद के विवेक और मेहनत से अपने देश और समाज के लिए कुछ कर गुजरना चाहते हैं।
मेघा ने आज से दो साल पहले 22 मार्च को सिहोर से रवाना होकर 22 मई 2019 को एवरेस्ट की 29029 फिट ऊंचाई पर तिरंगा फहराया था। इस ऊंची उड़ान को पंख लगाने में बुनियाद के सरोकारी मेघा के पिता दामोदर परमार कहते हैं- ‘ऐसा नहीं है कि बच्चों को आजादी नहीं देनी चाहिए, उन पर भरोसा करना चाहिए, उनकी बातों को समझना चाहिए, आज के लड़के-लड़कियां जो करना चाहते हैं, उन्हें मौके मिलने ही चाहिए।’ वह बताते हैं कि ‘पहली बार जब मेघा ने एनएसएस कैंप में जाने की उनसे इच्छा जताई थी, कुछ देर विचार करने के बाद उन्होंने सहर्ष भेज दिया था, जबकि इस पर लोगों ने बड़ी आपत्ति जताई थी। वह कहते हैं, मेघा जब भी कहीं टूर पर निकला करती, लोग मुझको टोकते रहते थे। पहली बार मेघा एवरेस्ट पर नहीं चढ़ पाई थी। दूसरी बार जब वह तैयारी कर रही थी तो उसकी कमर में चोट आ गई। तब मैं डर गया था, लेकिन उसकी मेहनत देख मुझे भरोसा हो गया था कि वह कुछ बड़ा कर दिखाने का मजबूत हौसला रखती है, और उसने कर दिखाया। मुझे उस पर गर्व है।’
मेघा भी कहती हैं कि आज वह जो भी हैं, अपने पापा की प्रेरणा और सहयोग से। उन्होंने कभी मुझमे और मेरे भाई में अंतर नहीं किया। मुझे अच्छे से याद है। वर्ष 2013 में पापा को मेरी और मेरे भाई की कॉलेज की फीस जमा करनी थी। फसल आई नहीं थी। भाई की फीस का इंतजाम हो गया, लेकिन मेरी फीस का इंतजाम नहीं हो पाया। ऐसे में उन्होंने गाय बेच कर मेरी फीस चुकाई थी। जब मेरी कमर में गंभीर चोट आई थी, वह तो टूट लगे थे। उनको लगता था कि शादी कैसे होगी। जब यही सवाल लोग खड़े करते तो वो मेरे लिए लोगों से लड़ पड़ते, कहते- उसे इस काबिल बनाऊंगा कि लड़के वाले खुद घर आएंगे। इस तरह उन्होंने मुझ पर भरोसा किया, आजादी दी और सफलताएं हासिल होती चली गईं।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि ‘प्रदेश की पहली ऐसी बेटी की दृढ़ता, संकल्प और समर्पण को वह प्रणाम करते हैं।’ गौरतलब है कि इस समय मेघा मध्य प्रदेश में ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान की ब्रांड एम्बेसेडर हैं। पिछले साल राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने रूस के 18,510.44 फीट ऊँचे पर्वत माउंट एल्ब्रस को फतह करने के बाद मेघा को बधाई देते हुए कहा था कि राज्य सरकार उनके हर प्रयास को पूरा सहयोग प्रदान करेगी।
मेघा वर्ष 2019 में जिन दिनो एवरेस्ट फतह करने निकली थीं, कमर में चोट आ जाने पर उन्होंने अस्पताल से ही पिता को फोन किया – ‘पापा मैं मेघा बोल रही हूं… मैं अभी बैस कैंप के एक अस्पताल में हूं… मैं बीमार हूं… मुझे इंफेक्सन हो गया है… इस कारण से मैं आप से ज्यादा बात नहीं कर पा रही हूं… मैं ठीक होते ही दो-चार दिन में घर लौट आऊंगी… आप लोग चिंता मत करना… यहां मेरा अच्छा इलाज चल रहा है… मैं फिर फोन करूंगी।’ बाद के वक़्त में जब वह एक दिन एवरेस्ट फतह कर घर लौटीं, पिता की आंखें खुशी से छलक पड़ी थीं।
देश-दुनिया के शिखरों तक पहुंचकर इतिहास रचने वाली वाली मेघा के सामने तरह-तरह की चुनौतियां रही हैं। एक तो वह एक ऐसे छोटे गांव से हैं, जहां की लड़कियों की बहुत कम उम्र में शादी कर दी जाती है। जब मेघा की उम्र की सभी लड़कियों की शादी हो गई तो लोग उनकी भी शादी के लिए माता-पिता पर दबाव बनाने लगे। माता-पिता ने जब मेघा से शादी के बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि मुझे कुछ समय दें, अभी मैं कुछ ऐसा करना चाहती हूं, जिसके बाद आप गर्व महसूस करेंगे। उसके बाद मेघा ने एवरेस्ट पर चढ़ने का लक्ष्य बनाया और सफलता प्राप्त की। मेघा की मां मंजू परमार बताती हैं कि मेघा का पीएचडी के लिए सिलेक्शन हो गया था, फीस भी जमा कर दी थी लेकिन एवरेस्ट फतह की तैयारियों में उसे बीच में पढ़ाई छोड़नी पड़ी।
एवरेस्ट फतह करने के बाद 8 अगस्त 2019 को मेघा को दूसरी बड़ी कामयाबी हासिल हुई। उन्होंने यूरोप के 18510.44 फीट ऊंचे पर्वत एल्ब्रुस शिखर पर तिरंगे के साथ भारत के ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का भी परचम लहरा दिया। उस पर्वताहोरी टीम में उनके साथ रहे अरुण, आशा, महिपाल, सतीश और शेखर। मेघा ने उस चुनौतीपूर्ण अभियान की शुरुआत 5 अगस्त 2019 से की थी। उसके बाद फाइनल समिट के लिए वे 8 अगस्त को रात 1 बजे निकलीं और फिर सुबह 10.14 पर चोटी पहुंचकर समिट किया। वहां तक मध्य प्रदेश और देश का नाम रोशन करने वाली मेघा जब अपने राज्य में लौटीं, मंत्रिमंडल की ओर से 3 जून 2019 को उनको सम्मानित किया गया। उसी दिन महिला एवं बाल विकास विभाग ने उनको ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान का ब्रांड एंबेसडर घोषित किया।
‘कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना’ जैसी प्रचलित पंक्तियों को दुहराती हुई मेघा उन बातों जिक्र करती हैं, जिसकी वजह से वह दुनिया की तीन सबसे बड़ी पर्वत श्रृंखलाओं पर पहुंचीं। उन्होंने वहां पहुंचकर न केवल सुकून की सांस ली बल्कि अपने पैरों तले उस जज्बे को महसूस किया, जो वह पूरा करना चाहती थीं। सफर जारी है, जिंदगी थमने का नाम नहीं… कुछ इस तरह की एक प्रेरणा हैं ‘मेघा परमार’। मेघा की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही गवर्मेंट स्कूल में हुई।
मेघा कहती हैं, ‘जिंदगी में यदि आगे बढ़ना है तो रिस्क लीजिए। मुझे रिस्क लेना पसंद है। रिस्क नहीं, तो आगे कुछ नहीं। बचपन से ही मैं कुछ ऐसा करना चाहती थी, जो अपने आप मे एक मिसाल हो। जब आप कुछ ऐसा करने वाले हैं, जो असंभव नहीं, बल्कि संभव भी इतना आसान न हो तो चुनौतियां तो आती हैं। ऐसे में आप खुद को इन सभी चीजों में प्रूफ कैसे करते हैं। ये सिर्फ आप तय करते हैं। यदि आप में किसी भी काम को पूरा करने का जुनून है तो आप लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं। ये मुमकिन है। एवरेस्ट शिखर हो या यूरोप की एल्ब्रुस पर्वत चोटी, वहां कई तरह की चुनौतियां थीं, तेज हवा, भारी स्नोफॉल और भी कई मुश्किलें, लेकिन मैं सोचती हूं कि जब आप कोई काम करना शुरू करते हैं तो पीछे नहीं हटना चाहिए, समस्याएं आएगीं, बहुत सी आएंगी, यदि आप अपने लक्ष्य पर केंद्रित हैं तो हर मुश्किल कामयाबी आपके लिए संभव है।’
वह कहती हैं, ‘आप जो कर रहे हो, उसे करते रहो। लोग क्या कहते हैं, इस बारे में यदि आप सोचोगे तो आप वो नहीं कर पाओगे, जो आप सचमुच में करना चाहते हो। 2018 में, मैं माउंट एवरेस्ट से करीब 700 मीटर पीछे रह गई थी। बाद में ट्रेनिंग के दौरान फ्रैक्चर के कारण मैं काफी टूट चुकी थी। आस-पास सिर्फ लोग ताने दे रहे थे लेकिन मेरा मन उस समय कहता था कि मुझे तो सिर्फ अपना लक्ष्य हासिल करना है, और मैंने किया।’ वह बताती हैं कि ‘उनकी सफलताओं का उनके गांव पर भी गंभीर असर हुआ। उनके गांव की लड़कियों को बाहर निकलने के घर वालों से खुशी-खुशी मौके मिलने लगे। उनकी सफलता सामाजिक बदलाव की तरह है। यदि गांव की एक लड़की नाम रोशन करती है तो और लड़कियों के माता-पिता भी उन्हें आगे बढ़ाने में कोई झिझक नहीं करते हैं। मैं खुश हूं कि मेरी एक पहल से मेरे गांव में बदलाव आया है। मैं अपने ऑर्गन डोनेट कर चुकी हूं। मैनें कोशिश की है, पर्वतारोहियों के लिए सरकार कुछ ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट्स या कुछ बेहतर करे, लेकिन चीजें अभी स्पष्ट नहीं हैं।’
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