छत्तीसगढ़ के गांव गलियों में अर्से से खेले जा रहे कई ज्ञानवर्धक, स्वास्थ्यवर्धक और स्मरणवर्धक खेल अब लुप्तता के कगार पर पहुंच चुके हैं। आधुनिक युग में मोबाईल, टीवी के चलते नई पीढ़ी पुराने कई खेलों से अनजान है। गली मोहल्लों में यदा कदा ही गिल्ली डंडा, डंडा पचरंगा, भौंरा, बाटी, बिल्लस, रेस टिप खेलते बच्चे नजर आते हैं।
शहर में घरेलू कार्यक्रम के दौरान या गणेश, नवरात्रि पर्व के चलते सालों में एक दो बार कुछ बच्चे खेलते दिख जाते हैं, लेकिन गांवों में भी अब यह खेल कम होने लगे हैं। बच्चे टीवी, वीडियो गेम खेलने, मोबाईल खेलने और कार्टून देखने में मस्त हैं। इसे लेकर विरासत बचाने में लगे कला और खेल प्रेमी चिंतित हैं। फुगड़ी, लंगड़ी दौड़, पत्ता ढूंढो, लुका छिपी, पिट्टूल, बिल्लस जैसे खेल खेले जाते थे। इनमें कई खेलों में खेलते हुए गीत भी गाया जाता था।
लोगों का भी कहना है कि गीत आदि गायन के लिए ऐसे खेलों से बच्चों को लय का बोध होता था। पत्ता ढूंढो खेल से बच्चे बताए गए पत्ते को पेड़ से तोड़कर लाते थे, इससे वे पेड़ पौधे के पहचान पाते थे। लंगड़ी बिल्लस खेल एक पैर से शरीर का भार साधने, फुगड़ी खेल शरीर के व्यायाम के लिए, पिट्टूल, भौंरा बाटी खेल निशानेबाजी के लिए और लुका छिपी जैसे खेल चेहरा पहचानने, स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए बचपन से मददगार होते थे। इन खेलों से बच्चों का विकास होता था।
पहले की तरह अब दशहरा, मकर संक्रांति के त्यौहार के अवसरों पर आसमान में पतंग देखने नही मिलता। पतंगबाजी के शौकीन घट रहे हैं। एक डोर के माध्यम से आसमान में उड़ती पतंग पर नियंत्रण रखने का कौशल पतंगबाजी से मिलती है।
लक्ष्मी नारायण आचार्य का कहना है कि निश्संदेह छत्तीसगढ़ संस्कृति और परंपरा के पुराने खेलकूद से आज की पीढ़ी अंजान है। शहर तो दूर गांवों में भी अब गिल्ली डंडा, बिल्लस, फुगड़ी, रेस टिप, डंडा पचरंगा खेल देखने को नही मिलते। इन खेलों का खास महत्व होता था। यह सिर्फ खेल नही थे, बल्कि इससे बच्चों का मानसिक, शारीरिक विकास होता था, पर्यावरण और सांस्कृतिक से बच्चे घुल मिल जाते थे, अपनापन बढ़ता था। इंटेक इस पर मंथन करेगी और इसे सहेजने का भरपूर प्रयास करेगी।
पूर्व जनपद सदस्य मोती लाल साहू ने कहा कि बच्चे अब मोबाईल टीवी, वीडियो गेम तक सिमट रहे हैं। कहते है की पुराने खेलों में सभी का अपना विशेष महत्व था। खेल केवल खेल नहीं होता था बल्कि एक सीख देता था। वास्तव में यह चिंतनीय है कि बच्चे अब मोबाईल टीवी वीडियो गेम तक सीमट रहे हैं। जिससे उनके ज्ञान का तो विकास हो रहा है लेकिन सर्वांगीण विकास नही हो रहा है।