टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन सायरस मिस्त्री ने कहा है कि वह अब समूह में वापसी करना नहीं चाहते। रविवार को उन्होंने कहा कि वे कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) के शुक्रगुजार हैं, जिसने रतन टाटा और दूसरे ट्रस्टियों के पूर्वाग्रह भरे रवैये को समझा। साथ ही, मुझे हटाने के लिए अपनाए गए तरीके को भी गैरकानूनी माना। मिस्त्री ने टाटा समूह के हित को अपनी पहली प्राथमिकता बताया।
सायरस मिस्त्री ने कहा- मेरे लिए अपनी बजाय टाटा समूह का हित जरूरी है। मैं यह साफ कर देना चाहता हूं कि एनसीएलएटी का आदेश मेरे पक्ष में होने के बावजूद मैं टाटा सन्स के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन समेत टीसीएस, टाटा टेलिसर्विसेस या टाटा इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर का पद ग्रहण का इच्छुक नहीं हूं।
उन्होंने कहा कि वह माइनॉरिटी शेयर होल्डर की हैसियत से अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सारे विकल्पों पर विचार करूंगा। टाटा समूह में निष्पक्षता और कॉर्पोरेट गवर्नेंस का उच्चतम स्तर बनाए रखना मेरी प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि इसमें पिछले 30 साल की तरह टाटा सन्स के बोर्ड का सदस्य बने रहना भी शामिल है।
सायरस मिस्त्री मामले में एनसीएलएटी के फैसले के खिलाफ टाटा ग्रुप के चेयरमैन एमेरिटस रतन टाटा ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। रतन टाटा ने दलील दी कि अपीलेट ट्रिब्यूनल ने उन्हें बिना तथ्यों या कानूनी आधार के दोषी ठहरा दिया। मिस्त्री की कमियों की वजह से टाटा ग्रुप की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा।
मिस्त्री को अक्टूबर 2016 में टाटा सन्स के चेयरमैन पद से हटाने के मामले में ट्रिब्यूनल ने बीते 18 दिसंबर को फैसला दिया था। फैसले में कहा था कि रतन टाटा ने टाटा सन्स के अल्प शेयरधारकों के हितों की अनदेखी कर पक्षपातपूर्ण और दमनकारी कदम उठाए। मिस्त्री फिर से टाटा सन्स के चेयरमैन नियुक्त किए जाएं। बता दें मिस्त्री परिवार के पास टाटा सन्स के 18.4% शेयर हैं।