संसद का बजट सत्र 31 जनवरी से शुरू हो चुका है। वित्त वर्ष 2019-20 का आर्थिक सर्वे सदन में पेश हो गया। एक फरवरी, शनिवार को वित्त वर्ष 2020-21 का आम बजट पेश किया जा रहा है। संसद का यह बजट सत्र 3 अप्रैल तक चलता रहेगा। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और आर्थिक मंदी को लेकर चल रहे विरोध के मद्देनजर यह सत्र काफी हंगामेदार होने का अंदेशा है। हर साल बजट की घोषणा करने से पहले केंद्र सरकार पिछले वित्त वर्ष का आर्थिक सर्वेक्षण ले कर आती है जिससे पता चलता है कि बीते वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था का क्या हाल रहा।
सदन के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सरकार के एजेंडे को सामने रखा। उन्होंने कहा कि मेरी सरकार भारत की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके लिए सभी स्टेकहोल्डर्स से बातचीत करके अर्थव्यवस्था में हर स्तर पर काम किया जा रहा है। दुनियाभर से आने वाली चुनौतियों के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था की नींव मजबूत है। हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 450 बिलियन डॉलर से भी ऊपर के ऐतिहासिक स्तर पर है।
बजट सत्र का पहला चरण 31 जनवरी से 11 फरवरी तक और दूसरा चरण दो मार्च से तीन अप्रैल तक चलेगा। बजट सत्र के बीच में करीब एक महीने का अवकाश रखा जाता है। इस दौरान विभिन्न मंत्रालयों, विभागों से जुड़ी संसदीय समितियां बजट आवंटन प्रस्तावों का परीक्षण करती हैं। केन्द्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों की बैठक बुलाते हैं। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का दूसरा बजट पेश करेंगी। विश्लेषकों को उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था में जारी नरमी को देखते हुए सरकार इस बजट में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये उपायों की घोषणा कर सकती है।
बहरहाल, आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 प्रस्तुत करने के बाद केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने कहा है कि इसका मूल विषय है संपत्ति का सृजन। सर्वेक्षण के मुताबिक, 2019-20 के पहले छह महीनों में आर्थिक विकास की दर गिर कर 4.8 प्रतिशत पर आ गई थी और महंगाई दर दिसंबर 2019-20 में बढ़ कर 7.35 पर पहुंच गई थी लेकिन सर्वेक्षण का पूर्वानुमान है कि साल के आखिरी छह महीनों में विकास दर में वृद्धि हुई होगी जिसकी वजह से पूरे साल की विकास दर 5 प्रतिशत होने का अनुमान है। आर्थिक मामलों के जानकार इस सर्वेक्षण से संतुष्ट नहीं हैं और उनका कहना है कि ये अर्थव्यवस्था की असली तस्वीर का ईमानदार आंकलन नहीं है।
कहा जा रहा है कि इस सर्वेक्षण ने इसी सरकारी टीम द्वारा जुलाई 2019 में प्रस्तुत किए गए आर्थिक सर्वेक्षण को एकदम भ्रामक साबित कर दिया है। इस सर्वेक्षण ने ये माना है कि इस साल विकास दर दो अंकों में नहीं जाने वाली है और अगर महंगाई और बढ़ी तो विकास की ये दर भी महंगाई की वजह से होगी। इसका मतलब है कि चाहे वित्तीय घाटे का आंकड़ा हो या आमदनी का, सभी आंकड़ों को इसी रोशनी में देखा जाएगा कि अगला साल संकट का साल है। जानकार कह रहे हैं कि सर्वेक्षण में दिए विकास दर के इन आंकड़ों का मतलब ये है कि सरकार असलियत को अस्वीकार कर रही है। पिछले कुछ महीनों में विकास दर लगातार गिरती रही है और अभी वो 4.5 प्रतिशत से भी कम है। ये अचानक पांच प्रतिशत पर तब तक नहीं पहुंच सकती, जब तक आखिरी तिमाही में छह प्रतिशत पर न पहुंच जाए। सर्वेक्षण में कई आयामों को लेकर दीर्घकालिक मूल्यांकन भी किया गया है जिस पर आने वाले दिनों में बहस हो सकती है। जैसे, सर्वेक्षण कहता है कि उदारीकरण के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था को ठीक से खोला नहीं गया जिसकी वजह से विकास भी ठीक से नहीं हुआ। इसे एक तरह से ऐसे समझा जा सकता है कि सरकार कह रही है कि अर्थव्यवस्था को और खोलने की जरूरत है, नहीं तो नुकसान बढ़ जाएगा। सर्वेक्षण के मूल विषय ‘संपत्ति का सृजन’ एक महत्वाकांक्षी सोच है जबकि असलियत ये है कि इस समय आर्थिक मंदी की वजह से चिंता ये बनी हुई है कि संपत्ति का नष्ट होना कैसे रुके और बचत कैसे हो।