जब से कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को अपने शिकंजे में कसा है, ज्यादातर सरकारें बड़े भोलेपन के साथ ज्ञान बांट रही हैं कि घरों में रहें लेकिन भारत समेत दुनिया की लगभग दो चौथाई जिन लोगों के पास अपना घर है ही नहीं, वे कहां रहें, इसका उनके पास कोई समाधान नहीं है। कोई स्थायी समाधान तो उनके पास किराए के मकानों में रह रहे लोगों के लिए भी नहीं है। हमारे देश में कहा जा रहा है कि बेघरों के लिए अस्थायी केंद्र बनाए हैं, जहां तीनों वक्त का भोजन दिया जाता है और चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम चलाए जाते हैं लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कत्तई सिरे से अविश्वसनीय देखी जा रही है।
आज महामारी रोकने के लिए पूरा देश बंद है। एक ताज़ा स्टडी के मुताबिक, कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए अचानक लगाए गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन ने दसियों लाख बच्चों की ज़िंदगी में अफ़रा-तफ़री मचा दी है। दसियों हज़ार बच्चे रोज़ाना हेल्पलाइन पर कॉल करके मदद मांग रहे हैं जबकि हज़ारों को भूखे पेट सोना पड़ रहा है। भारत में 47.2 करोड़ बच्चे हैं और दुनिया में बच्चों की सबसे बड़ी आबादी भी भारत में ही हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि ग़रीब परिवारों के चार करोड़ बच्चे सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं। इनमें वो बच्चे भी शामिल हैं जो ग्रामीण इलाक़ों में खेतों में काम करते हैं और वो भी जो शहरों में कूड़ा बीनने का काम करते हैं। चौराहों पर गुब्बारे, पेन, पेंसिल बेचने वाले या भीख मांगने वाले बच्चे सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं। बाल मज़दूरों और सड़क पर रहने वालों बच्चों के बीच काम करने वाले ग़ैर सरकारी संगठन चेतना के निदेशक संजय गुप्ता कहते हैं कि सबसे ज़्यादा वो बच्चे प्रभावित हैं जो शहरों में सड़कों पर, फ़्लाइओवरों के नीचे और तंग गलियों में रहते थे।
ये बेघर बच्चे देश-समाज से पूछ रहे हैं कि लॉकडाउन के दौरान सभी से कहा गया है कि घरों में ही रहो, लेकिन सड़क पर रहने वाले बच्चों का क्या, वो कहां जाएं, उनके पास तो घर भी नहीं? दिल्ली में क़रीब 70 हज़ार बच्चे सड़क पर रहते हैं। ये बच्चे ज़्यादातर आत्मनिर्भर होते हैं। वो अपना पेट भरने की ख़ुद ही कोशिश करते हैं, ये पहली बार है कि उन्हें मदद की ज़रूरत पड़ रही है लेकिन वो व्यवस्था का हिस्सा नहीं हैं और उन तक पहुंचना भी आसान नहीं है, ख़ासकर मौजूदा परिस्थितियों में। हालात से चिंतित बच्चे वीडियो संदेशों में अपने परिजनों के बेरोज़गार होने का डर ज़ाहिर कर रहे हैं, वो पूछ रहे हैं कि राशन का इंतेज़ाम कैसे किया जाए या जब सब बंद है तो पैसे कैसे कमाए जाएं।
वे बच्चे, जिनके पास कामचलाऊ मोबाइल सेट है, बताते हैं कि कई बार लोग आते हैं और खाना बांटते हैं, उन्हे नहीं पता कि ये लोग कौन हैं लेकिन जो खाना उन्हे मिलता है, वह बहुत कम होता है। उनको दो-तीन दिनों में एक ही बार खाना मिल पा रहा है। वे नहीं जानते कि वे कितने दिनों तक ऐसे ज़िंदा रह पाएंगे। सरकार उनकी मदद करे।