गुजरात के उप-मुख्यमंत्री नितिन पटेल को हर वक़्त इस बात का मलाल रहता है कि सचिवालय में उनको रोजाना गैर-गुजराती आईएएस, आईपीएस अधिकारियों की नेमप्लेट पढ़नी पड़ती है। गुजरात के बाहर के आईएएस, आईपीएस अधिकारियों की नेमप्लेट पढ़ कर वह दुखी हो जाते हैं। उनको इस बात की भी कोफ्त होती रहती है कि उनके गुजरात के युवा होश संभालते ही अपने पुरखों की धन-संपत्ति संभालने में ही जुट जाते हैं। अच्छी पढ़ाई-लिखाई कर वह गैर-गुजरातियों की तरह आईएएस, आईपीएस नहीं बन पाते हैं। नितिन पटेल के इस गजब के गैरहिंदुस्तानी दुख के लिए भला कोई क्या कर सकता है। इसमें तो उनके सचिवालय के आईएएस, आईपीएस भी कोई मदद नहीं कर सकते क्योंकि वे भी गैरगुजराती हैं। पटेल कहते हैं कि हम पढ़ लिखकर व्यापार-धंधे के लिए अमेरिका समेत अन्य देशों में पहुंचे, लेकिन सचिवालय तक नहीं पहुंच पाए हैं।
अपना दुख साझा करते हुए पटेल एक समारोह में गुजरात के चौधरी समाज के लोगों से अपील करते हैं कि वे सभी अपने बच्चों को इतना पढ़ाएं-लिखाएं कि वह भी गैरगुजराती आईएएस, आईपीएस की तरह बड़े पदों तक पहुंच जाएं। वह चौधरी समाज को बताते हैं कि एक वक्त में सरकारी नौकरी में गुजरातियों की कम दिलचस्पी रहा करती थी। भारत सरकार में रेलवे, पोर्ट, ओएनजीसी सहित अनेक ऐसी जगह हैं, जहां उच्च स्तर पर गुजराती अधिकारी कम हैं। हम इस ओर दिलचस्पी नहीं लेते थे, सिर्फ व्यापार-धंधे में आगे बढ़ते रहे। खैर, अब विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। ऐसे हर माता-पिता की चाहत है कि उनके बच्चे आईएएस-आईपीएस अधिकारी बनें। सरकार भी ऐसे प्रशिक्षण संस्थानों के लिए सहूलियत दे रही है। पटेल को विश्वास है कि आने वाले समय में आईएएस-आईपीएस सहित उच्च पदों पर ज्यादा से ज्यादा गुजरातियों का कब्जा होगा।
मीडिया जब डिप्टी सीएम के इस दुख की नब्ज टटोलते हुए आकड़ों पर नजर दौड़ाता है तो पता चलता है पटेल की बातें में वैसी सचाई नहीं, जैसा रोना वह रो रहे हैं। गुजरात में कुल 504 नौकरशाह हैं, जिनमें गुजराती 179 (35%), उत्तर प्रदेश के नौकरशाह 54 (10%), बिहार के 49 (9.7%) हैं। राज्य में कुल 243 आईएएस में से गुजरात के 86 (35%), उत्तर प्रदेश के 25 (10%), बिहार के 17 (7%) और कुल 170 आईपीएस में गुजरात के 72 (42%), उत्तर प्रदेश के 17 (10%) और बिहार के 20 (12%) हैं। इसके अलावा राज्य के कुल 91 आईएफएस में
गुजरात के 21 (23%), उत्तर प्रदेश के 12 (13%) और बिहार के 12 (13%) हैं।
फिर भी उप-मुख्यमंत्री कहते हैं – ‘गुजराती अधिकारी यहां के लोगों की भावनाओं, जरूरत और राज्य की जमीनी स्थिति को अच्छी तरह समझ सकता है। मौजूद आईएएस अधिकारी सरकार के दिशा-निर्देश पर अच्छा काम करते हैं लेकिन जिस लगाव से गुजराती काम कर सकते हैं, वह शायद कम होता है। भाषा का अवरोध भी एक समस्या है। छोटे गांव के व्यक्ति, किसान जब अधिकारी से गुजराती में बात करते हैं, तो ऐसी स्थिति में गुजराती अधिकारी ही समझ सकता है। अधिकांश राज्यों में आईएएस-आईपीएस स्थानीय अधिकारी उच्च पदों पर होते हैं। गुजरात में यह कसक रही है, जिसे पूरा करने का प्रयास सरकार कर रही है।’ (पूरी खबर दैनिक भास्कर की एक विशेष रिपोर्ट पर आधारित)