देहरादून का अब तक विधिक तरीके से राजधानी घोषित न हो पाना भी भारतीय इतिहास की एक अनोखी घटना है। सोमवार को, उत्तराखंड शासन और सरकार की ओर से गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने के साथ ही राज्य का यह विचित्र किंतु सत्य वाकया एक बार फिर सुर्खियों में है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कल एक सवाल उठाया था कि उत्तराखंड की मुख्य राजधानी कौन ही है, सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को यह बताना चाहिए। सबको पता है कि उत्तराखंड राज्य का निर्माण कैसी रक्तरंजित परिघटनाओं के बाद संभव हो सका था।
बात सन् 1992 की है। गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी बनाने की मांग उत्तराखंड क्रांति दल ने उठाई थी। साढ़े सात साल बाद एक आयोग ने राजधानी स्थल चयन को लेकर अपनी रिपोर्ट भुवन चंद्र खंडूड़ी के नेतृत्व वाली तत्कालीन भाजपा सरकार को सौंपी, जिसे 13 जुलाई 2009 को विधानसभा में प्रस्तुत किया गया। उस रिपोर्ट पर कोई कदम उठाने की किसी सरकार ने न जरूरत समझी, न साहस दिखाया। कांग्रेस 2012 में दूसरी बार सत्ता में आई तो गैरसैंण को लेकर कुछ तेजी दिखी। पहली बार गैरसैंण का महत्व प्रदर्शित करने के लिए यहां कैबिनेट बैठक की गई। इसके बाद लगातार पांच साल गैरसैंण में विधानसभा का संक्षिप्त सत्र आयोजित किया गया। पिछले साल हालांकि यह क्रम टूटा। उत्तराखंड में सत्ता में रही दोनों राष्ट्रीय पार्टियों, भाजपा और कांग्रेस का रवैया गैरसैंण के मामले में 19 साल तक एक जैसा टालमटोल वाला रहा। मुद्दा सियासत से जुड़ा था तो दोनों पार्टियों ने इसे अपनी सुविधा के मुताबिक इस्तेमाल किया। गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाए जाने से यह पूरी तरह साफ भी हो गया।
भराड़ीसैंण (गैरसैंण) के ग्रीष्मकालीन राजधानी बनते ही अब सियासी गलियारों में यह चर्चा तेज है कि देहरादून को निकट भविष्य में राजधानी बना दिया जाएगा। यह इसलिए भी तय माना जा रहा है क्योंकि पूरे राज्य में केवल देहरादून ही एकमात्र विकल्प है, जहां राजधानी के लिए पूरा आधारभूत ढांचा उपलब्ध है। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने तो तुरंत ही मुख्यमंत्री से सवाल भी पूछ डाला कि भराड़ीसैंण (गैरसैंण) ग्रीष्मकालीन और देहरादून अस्थायी राजधानी है तो फिर राज्य की राजधानी कहां है।
उत्तराखंड राज्य गठन को लेकर बढ़ रहे दबाव के बीच चार जनवरी 1994 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अपने नगर विकास मंत्री रमाशंकर कौशिक की अध्यक्षता में छह सदस्यीय समिति का गठन किया था। वहीं से उत्तराखंड के रूप में अलग राज्य निर्माण की नींव पड़ी। समिति ने गैरसैंण को राजधानी का एक विकल्प बताया था। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की घोषणा के बाद केंद्र की राजग सरकार ने नौ नवंबर 2000 को उत्तरांचल का गठन किया। बाद में राज्य का नाम उत्तराखंड कर दिया गया। नित्यांनद स्वामी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने और अस्थायी राजधानी बनाया गया देहरादून को।
राज्य की स्थायी राजधानी के चयन के लिए जस्टिस वीरेंद्र दीक्षित की अध्यक्षता में राज्य की पहली अंतरिम भाजपा सरकार ने वर्ष 2001 में एकल सदस्यीय आयोग बनाया। आयोग ने जुलाई 2009 में रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर रखा गया। गैरसैंण में कैबिनेट बैठक के बाद नौ से 12 जून 2014 तक गैरसैंण में टेंट में पहला विधानसभा सत्र आयोजित किया गया। वर्ष 2018 तक गैरसैंण में हर साल एक सत्र का आयोजन हुआ। इस बार यहां बजट सत्र आयोजित किया गया है। उसी साल चार मार्च को भराड़ीसैंण में निर्मित विधानसभा भवन में विधानसभा सत्र में बजट भाषण के दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण को राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का एलान किया था। अब जाकर सोमवार, 8 जून को राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने को मंजूरी दी, जिसके बाद इसकी अधिकारिक सूचना जारी कर दी गई।