देश के उद्योगपतियों के संगठन फिक्की का कहना है कि कोरोना आपदा से भारतीय अर्थव्यवस्था पर इतनी तगड़ी चोट पड़ रही है कि निकट भविष्य में इसके नतीजे, खासकर रोजी-रोजगार की दृष्टि से बड़े भयावह हो सकते हैं। इस अभूतपूर्व संकट के दौर में रोजाना भारतीय अर्थव्यवस्था को चालीस हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि नेशनल हॉकर्स फेडेरेशन के मुताबिक़ देशभर के चार करोड़ से अधिक रेड़ी-पटरी-ठेलेवालों में 95 फ़ीसद घर पर बैठे हैं, और आठ हज़ार करोड़ रूपये दैनिक का टर्नओवर देने वाले भारतीय अर्थव्यवस्था के इस हिस्से की पूंजी तेज़ी से बिखर रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से ही नोटबंदी, जीएसटी के ग़लत तरीक़े से लागू करने जैसी वजहों से प्रभावित रही थी, बैंक के एनपीए अधिक थे, और क़र्ज़ मांगने वालों की भी कमी थी, उसपर से अब कोरोना और उसको क़ाबू करने के लिए तालेबंदी और पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर उसका असर. मगर तेल की गिरी क़ीमत और आरबीआई के पास मौजूद बड़ा कैश भंडार उसके लिए प्लस साबित हो सकते हैं।
फ़िक्की (फेडेरेशन ऑफ़ इंडियन चैंबर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री) ने अनुमान जताया है कि लॉकडाउन से रोजना भारतीय अर्थव्यवस्था को 40 हज़ार करोड़ रुपए का नुक़सान हो रहा है। इस साल अप्रैल-सितंबर के बीच कम से कम चार करोड़ नौकरियों के जाने का ख़तरा है। जाने-माने बैंकों और रेटिंग एजेंसियों ने अर्थव्यवस्था के बढ़ने के अनुमान को पहले से कम कर दिया – बार्कलेय ने साल 2020 के पुर्वानुमान को ढ़ाई प्रतिशत से घटाकर शुन्य कर दिया, वहीं फ़िच रेटिंग्स को लगता है कि इसमें दो फ़ीसद की बढ़ौतरी दर्ज हो सकती है, उस हिसाब से एडीबी यानि एशियन डेवलपमेंट बैंक चार फ़ीसद पर अधिक आशावान दिखता है। वर्ल्ड बैंक ने दक्षिणी एशिया के आर्थिक फ़ोकस रिपोर्ट में इस बढ़ोतरी को डेढ़ से 2.8 प्रतिशत के बीच रखा है, जो उसके मुताबिक़ पिछले तीन दशक में सबसे कम है।
दिल्ली आईआईटी में अर्थशास्त्र के पूर्व शिक्षक प्रोफेसर वी उपाध्याय मानते हैं कि अर्थव्यस्था मंदी की तरफ़ जाएगी। लॉकडाउन में एक माह तो पहले ही निकल गया है, और अब इसे और बढ़ा दिया गया है, सारी गतिविधियां बंद पड़ी हैं, और जब ये शुरू भी होंगी तो इसे पटरी पर आते-आते वक़्त लगेगा तो किसी बढ़ौतरी का तो सवाल ही पैदा नहीं होता है। बढ़ोतरी के अनुमान को बहुत आशावान मानते हुए वो मुल्क में बेरोज़गारी की दर की तरफ़ इशारा करते हैं जो अर्थव्यवयस्था का लेखा-जोखा रखनेवाली प्राइवेट संस्था सेंटर फ़ॉर मानीटरिंग इंडियन इकॉनॉमी (सीएमआई) के मुताबिक़ फ़िलहाल 23 फ़ीसद पर पहुंच गई है।