कोरोना वायरस ‘कोविड-19’ की शुरुआत से अब तक निवेशकों ने भारत समेत उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले देशों से 83 अरब डॉलर निकाले हैं जिससे इन देशों पर विकसित देशों की अपेक्षा अधिक दबाव है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालीना जॉर्जीवा ने जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के प्रमुखों के साथ सोमवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बैठक के बाद जारी बयान में यह जानकारी दी। उन्होंने यह भी कहा कि इस वर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी रहेगी यानी विकास दर ऋणात्मक रहेगी। मंदी कम से कम वैश्विक वित्तीय संकट जितनी या उससे भी बड़ी हो सकती है।
जॉर्जीवा ने कहा कि विकसित देश इस संकट से निपटने के लिए ज्यादा साधन संपन्न हैं, लेकिन उभरती हुई अर्थव्यवस्था और कम आये वाले बहुत से देशों के सामने बड़ी चुनौती पैदा हो गयी है। इन देशों से पूँजी निकासी के कारण उन पर बुरा प्रभाव पड़ा है और घरेलू गतिविधियाँ गंभीर रूप से प्रभावित होंगी। इस संकट के शुरुआत से अब तक निवेशकों ने उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले देशों से 83 अरब डॉलर निकाले हैं। यह किसी भी कालखंड में की गयी सबसे बड़ी पूँजी निकासी है।
उन्होंने कहा कि आईएमएफ को कम आय वाले देशों की विशेष चिंता है। उन्हें लोन उपलब्ध कराने के बारे आईएमएफ विश्व बैंक के साथ मिलकर काम कर रहा है। आईएमएफ प्रमुख ने कहा कि इस वर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी तय है, लेकिन वर्ष 2021 में सुधार की उम्मीद है। अगले साल सुधार के लिए यह जरूरी है कि ‘कोविड-19’ के संक्रमण को जल्द से जल्द नियंत्रित किया जाये। जॉर्जीवा ने बताया कि अब तक लगभग 80 देश आईएमएफ से मदद की गुहार लगा चुके हैं। दूसरे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के साथ मिलकर उन्हें आपात ऋण उपलब्ध कराने के लिए काम किया जा रहा है। फिलहाल संगठन के पास 10 खरब डॉलर की राशि उपलब्ध है।
एंजेल ब्रोकिंग के नॉन एग्री कमोडिटीज एंड करेंसीज प्रथमेश माल्या के मुताबिक कोराना वायरस के बढ़ते संक्रमण के कारण जहां निवेशक मौजूदा समस्याओं को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिसके चलते धातुओं की कीमत में लगातार गिरावट जारी है। सरकारों की ओर से कई शहरों में लॉकडाउन करने के कारण दुनियाभर में विभिन्न प्रकार के प्रोडक्ट के उत्पादन में कमी आई है और इसका असर कच्चे तेल की कीमतों में भी देखा जा सकता है। नीचे कोमोडिटीज के पिछले सप्ताह का सार बताया गया है।
दुनियाभर में कोरोनावायरस के बढ़ते संक्रमण के कारण गोल्ड की कीमतों में लगातार गिरावट देखने को मिली है और पिछले सप्ताह इसमें 1.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। इस वायरस ने दुनियाभर में 2.3 लाख लोगों को संक्रमित किया है और वैश्विक विकास की संभावनाओं पर आघात किया है, जिसके कारण लोग बुलियन की बजाय लिक्विडिटी पर भरोसा कर रहे हैं और इससे गोल्ड की कीमत में गिरावट देखने को मिली है। इसका सीधा असर अमेरिकी डॉलर पर हुआ है। निवेशकों ने गोल्ड बेचकर नकदी जमा की है, जिससे अमेरिकी डॉलर तेजी से बढ़ा है। गोल्ड की कीमत गिरने का दूसरा बड़ा कारण है अमेरिकी सरकार द्वारा 10 खरब डॉलर का राहत पैकेज जारी करना, जो अर्थव्यवस्था को स्थायी बनाए रखने के लिए अगले दो सप्ताह में अमेरिकियों को 1 हजार डॉलर डिलीवर कर सकता है। मौजूदा सप्ताह में इस बात की अपेक्षा है कि गोल्ड प्रति 10 ग्राम 40 हजार रुपए के नीचे रहेगा।
विश्वभर में कोरानावायरस के बने भय के माहौल के कारण कॉपर की कीमतें भी प्रभावित हुईं हैं। लंदन मेटल एंक्चेंज में बेस मेटल की कीमतें 9.9 फीसदी की गिरावट के साथ बंद हुई हैं, क्योंकि निवेश यूएस डॉलर में ज्यादा भरोसा दिखा रहे हैं, जो बेहतर रिटर्न दे रहा है। बड़े सेंट्रल बैंकों द्वारा डॉलर की लिक्विडिटी बढ़ाने के कारण बेस मेटल की कीमतों में काफी दबाव बढ़ गया है।
दुनियाभर के कई बड़े देशों जैसे चीन, भारत और यूरोपीय यूनियन द्वारा कम मांग के बावजूद सऊदी अरब और रूस द्वारा प्रोडक्शन बढ़ाए जाने से डब्ल्यूटीआई क्रूड की कीमतें पिछले सप्ताह 14 फीसदी तक कम हो गईं। कोरोना वायरस के चलते अमेरिकी फेडरल रिजर्व और अन्य देशों के बाजार में कमी और चीन के उत्पादन में भारी कमी होने के कारण डब्ल्यूटीआई क्रूड की कीमत में प्रति बैरल 30 डालॅर की कमी देखने को मिली। वहीं कोरोना वायरस के कारण जहां एक तरफ मांग कम हुई है, वहीं रूस और सऊदी अरब के बीच की लड़ाई से कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ गया है। अधिकारियों के मुताबिक सऊदी अरब अगले कुछ महीने तक प्रति दिन 1.23 करोड़ बैरल प्रति दिन की सप्लाई जारी रखेगा।