लॉकडाउन की वजह से करोड़ों लोगों की आजीविका छिन गई है। इस बीच मानव तस्करी के मामलों में तेजी से वृद्धि का अंदेशा पैदा हो गया है। अब तक कई ऐसे मामले आ चुके हैं जिनमें खुद मां-बाप ने ही अभाव की वजह से अपने बच्चों को लावारिस छोड़ दिया है। लगातार बदतर होती परिस्थिति की वजह से बेरोजगार लोगों के आसानी से मानव तस्करों के हत्थे चढ़ने का अंदेशा बढ़ रहा है। कई मानवाधिकार संगठनों और समाजशास्त्रियों ने सरकार से अभी से इस पहलू पर ध्यान देने की अपील की है। पश्चिम बंगाल तो अकसर मानव तस्करी के मामलों में अव्वल रहता रहा है। अब कोरोना और लॉकडाउन के साथ ही चक्रवाती तूफान अम्फान की मार ने रोजगार के तमाम साधन छीन लिए हैं। ऐसे में यहां भी तस्करी बढ़ने का अंदेशा है। दूसरी ओर, इसी सप्ताह दिल्ली हाईकोर्ट ने शादी कर नेपाल ले जाई गई एक नाबालिग युवती को वापस लाने का निर्देश दिया है।
भारत मानव तस्करी के मामलों में तो पहले से ही कुख्यात रहा है। यहां साल दर साल ऐसे मामले बढ़ते ही रहे हैं। वह भी तब जब हालात सामान्य थे लेकिन कोरोना और इसकी वजह से जारी लॉकडाउन ने करोड़ों लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा कर दिया है। रोजगार की तलाश में अपना घर छोड़ कर परदेस जाने वाले लाखों मजदूर एक झटके में बेरोजगार हो गए हैं। निजी कंपनियों में नौकरी करने वाला मध्य वर्ग भी सुरक्षित नहीं है। भारी तादाद में लोगों की नौकरियां गई हैं।
मानव तस्करों के लिए यह एक मुफीद अवसर है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक 2015 में भारत में मानव तस्करी के 6,877 मामले सामने आए थे लेकिन 2016 में मानव तस्करी के 8,000 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए 2017 और 2018 में भी ऐसे 10 हजार से ज्यादा मामले सामने आए थे। यह तो वैसे मामले हैं जिनकी सूचना पुलिस तक पहुंची। गैर-सरकारी संगठनों का कहना है कि खासकर ग्रामीण इलाकों में ऐसे तस्करों के चंगुल में फंसने वालों की सूचना ही पुलिस तक नहीं पहुंच पाती। ऐसे में इस आंकड़े के कई गुना ज्यादा होने का अनुमान है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल में केंद्र व दिल्ली सरकार को नेपाल से एक किशोरी को वापस लाने का निर्देश दिया है। आरोप है कि किशोरी के परिवार को जानने वाले एक शादीशुदा व्यक्ति ने उससे शादी की और नेपाल लेकर चला गया। न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की खंडपीठ ने कहा कि किशोरी को वापस लाने के लिए जल्द कदम उठाए जाएं और अभियुक्त को शीघ्र गिरफ्तार किया जाए। पीठ ने उक्त आदेश किशोरी की मां की तरफ से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर दिया।
लॉकडाउन लागू होने के बाद से ही देश के विभिन्न राज्यों से पैदल या दूसरे साधनों से घर लौटने वाले मजदूरों की दुर्दशा की तस्वीरें देश-दुनिया में लगातार सुर्खियां बटोरती रही हैं। एक गैर-सरकारी संगठन ने अपनी रिपोर्ट में अंदेशा जताया है कि लॉकडाउन की वजह से मानव तस्करी और बंधुआ मजदूरी के मामले तेजी से बढ़ सकते हैं। दो जून की रोटी जुटाने के लिए लोग अपनी औलाद तक को खेलने-खाने की उम्र में मजदूरी करने भेज सकते हैं या फिर उनको लावारिस छोड़ सकते हैं।
यह अंदेशा निराधार नहीं है। बीते महज एक सप्ताह के दौरान माहाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में ऐसे तीन मामले सामने आए हैं जिनमें माता-पिता ने ही अपने बच्चों को लावारिस छोड़ दिया था। बाल अधिकारों के हित में काम करने वाले संगठन इसे एक खतरनाक प्रवृत्ति की शुरुआत मानते हैं। बच्चों के हित में काम करने वाले संगठन कहते हैं कि देश के बड़े शहरों में सड़कों पर लावारिस व बेघर बच्चों और पशुओं का नजर आना सामान्य बात है। ऐसे ज्यादातर बच्चों को या तो उनके घरवालों ने छोड़ दिया है या फिर वे घर से भाग कर आए हैं लेकिन लॉकडाउन में फुटपाथी बच्चे कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। यह बेहद चिंता का विषय है। हैरत तो इस बात की है कि हमारी सरकारों के पास भी इस बारे में कोई आंकड़ा नहीं है।