हमारे देश में कोटा (राजस्थान) को कोचिंग कैपिटल भी का जाता है। हजारों छात्र यहां डॉक्टर-इंजीनियर बनने की तैयारी करते हैं। 1.60 लाख बच्चों में से अब यहां मुश्किल से 2 हजार छात्र मौजूद हैं। यहां जो स्टूडेंट्स रुकी हुई हैं, इनकी कहानी कुछ चौंकाने वाली है। कोई स्टूडेंट छह मंजिला हॉस्टल में वार्डन के साथ अकेली है तो कोई लॉकडाउन में घर तो गई थी, लेकिन फिर दोस्तों के साथ लौट आई, क्योंकि सपने ज्यादा जरूरी हैं। जेनेट विलियम कहती हैं कि 7 जून को मेरा रिजर्वेशन था। पापा लेने आने वाले थे, लेकिन 6 जून को ही वे कोरोना पॉजिटिव पाए गए। वे हैदराबाद के ही मिलिट्री हॉस्पिटल में एडमिट हैं। मां भी बीमार है। उन्हें एक महीने पहले ब्रेन स्ट्रोक हुआ था। वह अनस्टेबल हैं और फिलहाल कोलकाता में नाना के यहां है। वह कहती हैं, थोड़ी डिस्टर्ब जरूर हूं, लेकिन यहां सुनीता आंटी (मेंटर-वार्डन) हैं। वे मुझे अपनी बेटी की तरह रखतीं हैं। डांट भी देती हैं, सुबह उठा भी देती हैं। शाम को डिनर के बाद हम घूमते भी हैं। छह मंजिला इस हॉस्टल में फिलहाल मैं अकेली हूं बस आंटी के साथ। नीट का मेरा सेंटर हैदराबाद में आया है। रिजर्वेशन हो गया है, परीक्षा देने जाना है। तैयारी पूरी है, बस नीट क्रेक करना है।
साइमा रहमान बताती हैं कि मैं टेक्नीकली तो पटना, बिहार से हूं। 11-12वीं वहीं से किया, लेकिन केजी से 10वीं तक की पढ़ाई गल्फ कंट्री से की। एनआरआई हूं, पापा बहरीन में एरोनॉटिकल इंजीनियर हैं। 20 जून 2019 को यहां आई थी। कोरोना के कारण घर जा सकती थी, लेकिन पता था घर में सब आ जाएंगे तो पढ़ाई नहीं हो पाएगी। अभी यहां रहना अमेजिंग लग रहा है, घर से बेहतर महसूस कर रही हूं। पढ़ाई अच्छी चल रही है, इसलिए कोई प्रॉब्लम नहीं है। अब तो यहां घर सा माहौल लगता है। पापा बहरीन में है, मम्मी मेरे साथ रहती हैं। बहन ने एनआईटी इलाहाबाद से इंजीनियरिंग की है। अब वो आईआईएम से एमबीए करना चाहती है, इसलिए इंदौर में रहकर तैयारी कर रही है। लॉकडाउन में भी मुझे तो सेफ जगह यही लगती थी। प्रॉब्लम उन लोगों को है जो बाहर घूमते थे।
फरगीन नारिश कहती हैं कि इस पूरे एरिया में कोरोना नहीं है और न ही हमें यहां किसी तरह की प्रॉब्लम है। जिन बच्चों ने बिहार जाने के नाम पर लॉकडाउन के दौरान जो विरोध-प्रदर्शन किया था, हमनें उन लोगों को सपोर्ट नहीं किया। हम बाहर निकलने से भी बचते हैं। घर में मम्मी-पापा के अलावा एक बहन है जो बोल नहीं पाती। बड़ी दीदी जॉब करती है। वो इंजीनियर हैं और कोटा से ही पढ़कर गई हैं।
कोटा में रहकर मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी कर रही तमाम छात्राएं कोरोना के बाद भी घर नहीं गई। जो गईं, वो भी अब लौट आई हैं। बिहार की मुस्कान सिंह बताती हैं कि मैं बक्सर से हूं। मेरी बहन को कुछ दिन पहले ब्रेन ट्यूमर हुआ तो मम्मी-पापा तमिलनाडु के वेल्लोर चले गए। वहां बहन का सीएमसी में इलाज चल रहा है। फैमिली डिस्टर्ब चल रही थी, इसलिए घरवालों ने कहा कि अभी तुम वहीं पढ़ाई करो। लॉकडाउन के पहले से यहीं हूं। 11वीं में हूं, कॉम्पिटीशन बहुत है, पर यहां रहकर जो पढ़ रहे हैं, उनकी तैयारी अच्छी है। ऑनलाइन क्रैश कोर्स चल रहे थे, अब तैयारी के लिए ही ऑनलाइन एक्जाम्स हो रहे हैं, उसी में सब जुटे हैं।
शिनू सोलंकी कहती हैं, मैं टोंक से हूं। लॉकडाउन के दौरान घर गई थी। कुछ दिन रही, वहां कुछ केस निकले थे, लेकिन अब ग्रीन जोन है। फिर भी कोटा आ गई। मेरे साथ तीन सहेलियां और थीं। वहां परिवार बड़ा है। कुछ रिलेटिव भी आए हुए थे, तो वापस आ गई। 26 जुलाई को परीक्षा है, इसलिए यहीं रहकर तैयारी कर रही हूं। यहां कोई समस्या नहीं है, सुबह नाश्ता, दिन का खाना, शाम को फिर चाय-नाश्ता और रात को डिनर। ऑनलाइन का कोर्स पूरा हो गया है। खुद ही तैयारी कर रही हूं। पहले यहां भीड़ ज्यादा थी, लेकिन अब शांति है तो अच्छी पढ़ाई हाे रही है।