उत्तराखंड में किसानी के हालात पर कोरोना आपदा का गंभीर असर पड़ा है। राज्य के लाखों किसान एक साथ कई तरह की मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। यद्यपि राज्य के कृषि मंत्री सुबोध उनियाल कहते हैं कि कोरोना वायरस का असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है तो थोड़ा बहुत सभी प्रभावित होंगे। शासनादेश जारी कर दिया गया है कि पेस्टीसाइड, फर्टिलाइजर्स, बीज लाने-ले जाने पर पर कोई रोक-टोक नहीं होगी। परिवहन की समस्या के चलते किसानों को गाड़ियां नहीं मिल पा रही हैं। इसके लिए न्याय पंचायत स्तर पर सचल दल को सक्रिय किया गया है। उन्हें कीटनाशक, बीज जैसी जरूरी चीजें उपलब्ध करायी जाएंगी और किसान सचल दल से ये जरूरी सामान खरीद सकते हैं। सेब के बागवानों को परिवार समेत ऊंचाई पर जाने की छूट दे दी गई है। सेब में छिड़काव के समय बागवान नीचे के घरों से ऊंचाई पर बगीचों के पास चले जाते हैं।
उत्तराखंड के गांवों में गेहूं और सरसों की फसल पककर तैयार हो चुकी है, लेकिन लॉकडाउन के चलते किसान फसल काटने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। इसका मुख्य बड़ा कारण फसल मंडाई और ढुलाई के लिए थ्रेशर मशीनों, ट्रैक्टर और ट्रालियों की अनुपलब्धता है। हालांकि, प्रशासन ने कृषि यंत्रों को लाने व लेजाने के लिए छूट प्रदान की है। मगर, लॉक डाउन के कारण किसान कहीं आ-जा नहीं पा रहे हैं, जिससे कृषि यंत्रों का इंतजाम कर पाना संभव नहीं हो रहा है।
लॉकडाउन के दौरान किसानों को कृषि उपज बेचने और इसके भंडारण में आ रही दिक्कतों को देखते हुए सरकार ने किसानों को बड़ी राहत दे दी है। अब वे गांव या कोल्ड स्टोर, क्लस्टर से भी कृषि उपज बेच सकेंगे। यानी, व्यापारी अब सीधे गांवों में किसानों से गेहूं, फल-सब्जी समेत अन्य कृषि उत्पाद खरीद सकेंगे। इससे किसानों को अपने उत्पादों को मंडी तक ले जाने के झंझट से निजात मिल जाएगी। हालांकि, ये व्यवस्था हॉटस्पाट वाले क्षेत्रों को छोड़कर राज्य के अन्य हिस्सों में लॉकडाउन अवधि के लिए ही मान्य होगी। इस कड़ी में उत्तराखंड कृषि उत्पाद (विकास एवं विनियमन) अधिनियम में संशोधन करते हुए शासन ने अधिसूचना भी जारी कर दी है।
देहरादून जिले में इस सीजन में करीब 40 हेक्टेअर में किसानों ने फूल लगाए थे। इससे आमदनी दोगुनी होने की उम्मीद थी। फूल आवश्यक वस्तुओं की सूची में शामिल नहीं हैं। फूलों का इस्तेमाल करने वाले मंदिर, होटल समेत अन्य जगहें बंद हैं। लॉकडाउन के चलते फूल खेतों में ही मुरझा रहे हैं। बताते हैं कि एक हेक्टेअर क्षेत्र में न्यूनतम एक लाख रुपए का नुकसान है। इस तरह अकेले देहरादून में किसानों को 40 लाख का नुकसान हो गया है। पूरे प्रदेश में इस समय फूलों की खेती की बढ़ावा दिया जा रहा है।
राज्य के तमाम किसान पेरूमल लीज पर जमीन लेकर खेती करते हैं। ज़मीन के लिए उन्हें सालाना हज़ारों रुपये लीज़ देनी होती है। उनके खेतों में इस समय मटर पक कर खराब हो रही है। मुश्किल ये है कि किसान इस मटर का करें क्या। ज्यादातर गाड़ियां बंद हैं। समुद्र तल से करीब 4 हज़ार फीट की उंचाई पर टिहरी के नैनबाग के कोटीपाब गांव में आड़ू, प्लम, खुबानी और कीवी के बगीचे हैं। इस बार मार्च की बारिश और ओलावृष्टि पहले ही बागवानों पर भारी पड़ चुकी है। रही-सही कसर लॉकडाउन से पूरी हो रही है। तापमान कम होने से आड़ू की पत्तियां सिकुड़ रही हैं। सेब पर इस समय फूल आ रहे हैं। ये समय कीटनाशक के छिड़काव का है लेकिन कीटनाशक उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। बाजार और सरकारी संस्थान सब बंद पड़े हैं। फिर बगीचे में काम के लिए लोग भी उपलब्ध नहीं हैं। यहां ज्यादातर नेपाल के मज़दूर काम करते थे। जो अपने घरों को लौट रहे हैं।
किसानों के साथ पशुपालकों के लिए भी बड़ी मुश्किल है। देहरादून के नकरौंदा गांव के लोगों को जो चारा 900 रुपये प्रति क्विंटल तक मिलता था, उसकी कीमत अब 1300 रुपये से अधिक हो गई है। ज्यादातर सप्लाई पंजाब-हरियाणा से आती थी। मनाही के बावजूद पशुओं का चारा भी महंगा हो गया। मज़ूदर अपने घरों को लौट चुके हैं। पूरे गांव की यही समस्या है। बड़े किसान मशीनों से मंडाई-कटाई करते हैं लेकिन छोटे किसान मज़दूरों के भरोसे ही रहते हैं। 8-10 मज़दूर एक दिन में दो से ढाई एकड़ क्षेत्र में गेहूं की कटाई कर देते हैं। जिसके लिए प्रति एकड़ उन्हें 4 हजार मिल जाते हैं। मालिक-मजदूर दोनों निराश हैं।
पहाड़ में ज्यादातर ऑफ सीजन फसल उगायी जाती है। कई लोग इसी की व्यवसायिक खेती करते हैं। उत्तरकाशी के पुरोला में बड़े पैमाने पर टमाटर उगाया जाता है। टिहरी में आगराखाल के पास बड़े स्तर पर अदरक बोया जाता है। ऊंचाई वाले जिलों चमोली, उत्तरकाशी में इस समय आलू बोने का समय है। इस सबके बीज बाहर से आते हैं। लेकिन लॉकडाउन के चलते बाज़ार और कंपनियां सब बंद हैं। यदि किसानों को समय पर बीज नहीं मिले तो उनकी अर्थव्यवस्था बिखर जाएगी।
पौड़ी के एक गांव क्यार्क की सब्जियां आसपास के होटलों में चली जाती थीं लेकिन इस समय सब ठप है। खेतों में लगे मज़दूर लौट गए हैं, जिनके भरोसे खेती हो पाती थी। आऩे वाले टूरिस्ट अपने कार्यक्रम रद्द कर चुके हैं। अप्रैल से जून तक उनका पीक सीजन होता है लेकिन इस बार तो पर्यटन पूरी तरह ठप पड़ा है। फिलहाल, नैनीताल के पर्वतीय हिस्सों में सेब, आड़ू, जैसे फलों और मैदानी हिस्सों में आम, लीची के बागानों में काम के लिए श्रमिकों और वाहनों की आवाजाही की अनुमति दी गई है। इसके साथ ही हल्दी, अदरक समेत सब्जियों की बुवाई और पौधों की सुरक्षा के लिए कार्य कर रहे लोगों और वाहनों को आवश्यक सेवाओं में मानते हुए लॉकडाउन में छूट दी गई है।