एयर फोर्स पायलट 1962 के युद्ध में ईस्टर्न सेक्टर में तैनात रहे रिटायर्ड एयर मार्शल बी डी जायल कहते हैं कि पहले दोस्ती, फिर विश्वासघात, चीन की बड़ी पुरानी आदत है। गौरतलब है कि पूर्वी लद्दाख में सैन्य टकराव और 20 भारतीय सैनिकों के शहीद हो जाने के बाद चीन के साथ विवाद गहरा गया है। 1962 में चीन के साथ हुई जंग में शामिल रह चुके पूर्व सैनिकों ने उस समय हुए युद्ध को याद करते हुए कहा कि चीन पर कभी भी भरोसा नहीं किया जा सकता है। सैनिकों का कहना है कि चीन खुद को सुपरपॉवर मानता है और पीठ में छुरा घोंपकर विश्वासघात करना पुरानी आदत है।
बी डी जायल कहते हैं कि चीन के साथ अभी जो हालात बने हैं उसकी वजह यही है कि वह खुद को क्षेत्रीय सुपरपॉवर मानता है और भविष्य में विश्व का सुपरपॉवर बनना चाहता है। इसके साथ ही वह भारत को भी नियंत्रण में रखना चाहता है। दुनिया के करीब सभी बड़े देशों से उसका विवाद चल रहा है। विस्तारवादी नीतियों को बढ़ावा देने के लिए ही सीमा विवाद का काम कर रहा है। 1962 की जंग में अपने कई सारे साथियों को गंवा चुके नायक जगत सिंह दासिला (82) का भी ऐसा ही कुछ मानना है। वह नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी पर तैनात थे, जिसे आज अरुणाचल प्रदेश के नाम से जाना जाता है। वह कहते हैं कि मैंने 1962 की जंग में साथ में लड़े कई सारे दोस्तों को खो दिया। इसलिए मैं समझ कर सकता हूं कि आज सैनिक कैसा महसूस कर रहे होंगे। यह जरूरी है कि सरकार सैनिकों की भावनाओं को समझते हुए ऐक्शन ले, जिससे कि हमें और अधिक जवान ना खोने पड़े।
हवलदार करन सिंह (82) ने भी 58 साल पहले की स्थिति को याद करते हुए कहते हैं कि उस जंग को भले ही कई साल बीत चुके हों लेकिन हमें यह सबक मिला है कि चीन पर कभी भी भरोसा नहीं किया जा सकता है। विश्वासघात करना हमेशा से चीन की आदत रही है। वे दोस्ती के लिए हाथ आगे बढ़ाएंगे और पीठ में चाकू घोंप देंगे। ऐसा पहले भी हो चुका है। अगर मसला बातचीत से नहीं हल होता है तो भारत को कड़ा ऐक्शन लेना होगा। रिटायर्ड कर्नल प्रेम एंड्रयूज वेलॉंग की जंग पर रिसर्च कर चुके हैं, जिसे 1962 में भारत के एकमात्र काउन्टर अटैक के तौर पर माना जाता है। उन्होंने कड़ा स्टैंड लेने की बात करते हुए कहा, ‘चीन का व्यवहार इलाके के दादा की तरह रहा है लेकिन इस बार भारत को दिखा देना चाहिए कि वह धौंस नहीं जमा सकता है।
उत्तराखंड के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह कहते हैं कि केंद्र सरकार पड़ोसी देश चीन की चाल समझने में पूरी तरह नाकाम रही। इसकी कीमत 20 सैनिकों की शहादत के रूप में चुकानी पड़ी। भारत-चीन सीमा पर हुई हिंसक घटना का सामना करने वाले सेना के जवानों के साहस और योगदान की सराहना करते हुए कहा कि पार्टी देश की रक्षा के लिए शहीद हुए वीर सपूतों को नमन करती है। देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है।
गढ़वाल राइफल की चौथी बटालियन के जवानों ने जिस अदम्य साहस के साथ चीनी सैनिकों को मुहंतोड़ जवाब दिया था, वह वीरगाथा सैन्य इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। इस बटालियन को वर्ष 1962 के युद्ध में दो महावीर चक्र मिले थे। इसी युद्ध में चौथी गढ़वाल के बैनर तले चीन से लड़ चुके लांसनायक बलवंत सिंह बिष्ट आज चीन के धोखे और विश्वासघात से आहत हैं। युद्ध के बाद चीन में युद्धबंदी रहे बलवंत सिंह बिष्ट मूल रूप से चमोली के सीमांत गांव घेस के रहने वाले हैं। 80 वर्ष के हो चुके बिष्ट कहते हैं कि अब उम्र इजाजत नहीं देती। शारीरिक रूप से फिट होता तो सेना से कहता हमें बुलाओ, हम सिखाएंगे इस धोखेबाज को सबक। वह काफी वक्त से इस घटनाक्रम पर नजर बनाए थे, पर उन्हें लग रहा था कि अब चीन 1962 जैसी हरकत नहीं करेगा। लेकिन, उसने फिर वही चरित्र दिखाया। चीन के साथ साढ़े पांच दशक पहले हुए युद्ध को याद करते हुए बलवंत सिंह बिष्ट कहते हैं कि तब हमारे पास अच्छे हथियार नहीं थे। चीन के सैनिक संख्या में भी बहुत ज्यादा थे।
वह कहते हैं कि हमें मोर्टार गन व अन्य हथियार कंधे पर लादकर ले जाने पड़ते थे। लेकिन, अब हमारे पास दुनिया के बेहतरीन हथियार हैं। हमारी सेना दुनिया की शक्तिशाली सेनाओं में से एक है। अब चीन को भारत की तरफ निगाह उठाने की भूल नहीं करनी चाहिए। भारतीय सेना उसे हर मोर्चे में जवाब देने में सक्षम है। उनका कहना है कि घरेलू मोर्चे पर भी हम उसके सामान का बहिष्कार करके आर्थिक सबक सिखा सकते हैं।