निर्भया की मां आशा देवी ने कहा कि आज का सूरज, आज का दिन निर्भया के नाम है। आखिरकार उन्हें फांसी पर लटकाया गया। आज हमें न्याय मिला। आज का दिन देश की बेटियों के नाम है। मैं सरकार और न्यायपालिका का शुक्रिया अदा करती हूं। मैंने बेटी की तस्वीर को गले से लगाकर कहा कि आज तुम्हें इंसाफ मिल गया। बेटी जिंदा रहती तो मैं डॉक्टर की मां कहलाती। आज निर्भया की मां के नाम से जानी जा रही हूं। 7 साल की लंबी लड़ाई के बाद अब बेटी की आत्मा को शांति मिली। देश की बच्चियों, पूरे देश को इंसाफ मिला। आज का दिन देश की बच्चियों के नाम, निर्भया के नाम। आज का दिन निर्भया दिवस के तौर पर याद किया जाए।
निर्भया के दोषी चारों दरिंदों फांसी दे दिए जाने के बाद पीड़िता के गांव मेडौला कलां, बलिया (उत्तर प्रदेश) की लड़कियों ने कहा कि आज हमें न्याय मिला है। हम सभी के लिए बहुत खुशी का दिन है। अब लड़कियों के मन से डर निकल जाएगा। ये लोग भी हमारे समाज में कोरोनावायरस की तरह थे। दोषियों को सजा मिलने के बाद लोगों के मन डर पैदा होगा।
निर्भया के दादा मोहन सिंह ने कहा कि आज भारत से सबसे बड़ा कोरोना खत्म हो गया। निर्भया के चाचा सुरेश सिंह ने कहा कि काली रात कटने के बाद आज नया सवेरा शुरू हुआ। आज का दिन हमारे लिए होली और दिवाली है। हम कई सालों से इस दिन का इंतजार कर रहे थे। अब कलेजे को ठंडक पहुंची है। निर्भया की चाची भाग्यमणि ने कहा कि 7 साल से इस दिन का इंतजार कर रहे थे।
निर्भया के चाचा सुरेश सिंह ने बताया कि निर्भया के पिता शादी के बाद ही करीब 25 से 27 साल पहले दिल्ली शिफ्ट हो गए। वहां वह कुकर बनाने की कंपनी में पहले काम करते थे। उनके सभी बच्चे दिल्ली ही रहते हैं। निर्भया आखिरी बार जब 16-17 साल की थी, तब गांव आई थी। बिटिया को इंसाफ मिलने में बहुत देरी हुई। कोर्ट के फैसले पर खुशी तो है, लेकिन हैदराबाद में जिस तरह पुलिस ने काम किया, वैसा हो तो ज्यादा खुशी होती। निर्भया के चचेरे दादा शिवमोहन कहते हैं कि न्याय मिलने में देरी हुई है। इसलिए देश में दरिंदो की संख्या बढ़ गई है। तुरंत इंसाफ मिलना चाहिए।
उधर, करौली (राजस्थान) के एक छोटे से गांव कल्लदेह के लोग यहां के निवासी रहे निर्भया के दो दोषियों मुकेश सिंह और राम सिंह का नाम नहीं लेना चाहते हैं। फांसी दे दिए जाने के बाद यहां के लोगों ने कहा कि आरोपी बचपन में ही करौली से चले गए, लेकिन उनकी हैवानियत ने जिले को शर्मसार सर दिया। अब कुकर्म करने वालों को फांसी की सजा होना कानून और न्याय की जीत है। करौली का दाग भी धुल गया। मुकेश की शादी नहीं हुई थी। वह अपने तीन भाइयों के साथ दिल्ली में ही रहता था। उसकी मां कल्याणी जरूर दिल्ली आती-जाती रहती थी, लेकिन मुकेश के पिता की मौत के बाद गांव में ही रहने लगी थी। जो सजा सुनाए जाने के बाद दिल्ली ही चली गई। मुकेश का बड़ा भाई राम सिंह भी निर्भया केस का मुख्य दोषी था। दोनों साथ में ही दिल्ली में रहते थे। राम सिंह ड्राइवर था, वहीं मुकेश खलासी का काम करता था। राम सिंह की पत्नी की मौत होने के बाद वो शराब पीने का आदी हो गया था। दोषी राम सिंह ने ट्रायल के दौरान ही तिहाड़ जेल में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी।
औरंगाबाद(बिहार) के गांव कर्मालहंग का रहने वाला था निर्भया कांड का दोषी अक्षय सिंह ठाकुर। गांव का कोई भी शख्स अक्षय का नाम नहीं सुनना चाहता है। घर में माता-पिता और एक भाई हैं। वहां लोग कह रहे, अक्षय का इस गांव से कोई नाता नहीं है। उसने हमारे गांव की इज्जत मिट्टी में मिला दी। 7-8 साल पहले हमारे गांव को लोग इज्जत की नजर से देखते थे। इस गांव के कई युवक अपने दम पर आगे बढ़े। जब से निर्भया का मामला सामने आया है, यहां आने वाला हर कोई अक्षय के बारे में पूछता है। एक लड़के ने गलती की और पूरा गांव बदनाम हो गया। हमारे रिश्तेदार भी अब घर आने से कतराते हैं।