लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ संघर्ष में भारतीय जवानों की मौत के ख़िलाफ़ बुधवार को भारत के अलग-अलग राज्यों में विरोध प्रदर्शन हुए। पश्चिम बंगाल के एक प्रमुख औद्योगिक शहर सिलीगुड़ी में स्थानीय व्यापारियों ने मशहूर हॉन्गकॉन्ग मार्केट का नाम बदलने का भी फ़ैसला किया। यही हाल गुजरात के अहमदाबाद शहर का भी रहा। सोशल मीडिया पर एक वीडियो तेज़ी से वायरल हो रहा है जिसमें जनता चीन की कंपनी के टीवी को तोड़ते दिखाई दे रही है। दिल्ली में कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स ने ‘भारतीय सामान हमारा अभिमान’ के नाम से नया कैंपेन लॉन्च कर दिया। इसके साथ ही फ़िल्मी सितारों से अपील की गई है कि वो चीनी सामान के विज्ञापन न करें। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार चीनी मोबाइल कंपनी ओपो ने बुधवार को भारत में ऑनलाइन लॉन्चिंग कार्यक्रम रद्द कर दिया।
क्या मेड इन चाइना को एक झटके में ऐसे बाय-बाय बोला जा सकता है? इसको जानने और समझने के लिए ये जानना ज़रूरी है कि चीन, भारत को क्या बेचता है और चीन भारत से क्या ख़रीदता है। चीन, भारत को मशीनरी, टेलिकॉम उपकरण, बिजली से जुड़े उपकरण, ऑर्गैनिक केमिकल्स यानी जैविक रसायन और खाद बेचता है। भारत के रसोई घर, बेडरूम में, एयर कंडीशनिंग मशीनों की शक्ल में, मोबाइल फ़ोन और डिजिटल वैलेट के रूप में चीन कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में मौजूद है। “कुछ नया मिला, कुछ सस्ता मिला और बहुत सुंदर मिल जाए” जब हर ग्राहक की माँग ये होती है, तो व्यापारी के पास चीनी सामान के अलावा दूसरा विकल्प नहीं होता। इसलिए चाहे दिल्ली का सदर बाज़ार हो या पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी का हॉन्गकॉन्ग मार्केट, अथवा उत्तराखंड का नेपाल-चीन से सटा इलाका, सभी चीनी सामान से पटे पड़े होते हैं। एक सच्चाई ये भी है कि चीनी स्मार्टफ़ोन ओप्पो, श्याओमी जैसे ब्रैंड्स भारत में हर दस में से आठ बिकने वाले स्मार्टफ़ोन हैं।
ऐसे में जब भारतीय मीडिया में केंद्र सरकार के सूत्रों के हवाले से ये ख़बर चलती है कि बीएसएनएल और एमटीएनएल को आदेश दिया गया है कि 4G के लिए चीनी उपकरणों का इस्तेमाल रोका जाए, तो एक सवाल तो उठता है कि वास्तव में ये कितना संभव है। इसलिए जान लीजिए कि चीन का भारत में निवेश कितना है। चीन ने भारत में छह अरब डॉलर से भी ज़्यादा का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कर रखा है जबकि पाकिस्तान में उसका निवेश 30 अरब डॉलर से भी ज़्यादा का है। मुंबई के विदेशी मामलों के थिंक टैंक ‘गेटवे हाउस’ ने भारत में ऐसी 75 कंपनियों की पहचान की है जो ई-कॉमर्स, फिनटेक, मीडिया/सोशल मीडिया, एग्रीगेशन सर्विस और लॉजिस्टिक्स जैसी सेवाओं में हैं और उनमें चीन का निवेश है।
इसकी हालिया रिपोर्ट में जानकारी सामने आई है कि भारत की 30 में से 18 यूनिकॉर्न में चीन की बड़ी हिस्सेदारी है। यूनिकॉर्न एक निजी स्टार्टअप कंपनी को कहते हैं जिसकी क़ीमत एक अरब डॉलर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि तकनीकी क्षेत्र में निवेश की प्रकृति के कारण चीन ने भारत पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया है। उदाहरण के लिए, बाइटडांस, टिकटॉक की मूल कंपनी है, जो चीन की है और यह यूट्यूब के मुक़ाबले भारत में काफ़ी लोकप्रिय है। सामरिक चीनी निवेश पर भारत सरकार थोड़ा सतर्क थी। हाल ही में उसने अपनी नई प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) नीति को यह कहकर टाल दिया कि भारत के साथ ज़मीनी सीमा से जुड़े देशों के सभी निवेशों को निवेश से पहले मंज़ूरी की आवश्यकता होगी।
भारत और चीन के बीच कारोबार में किस तरह बढ़ोतरी हुई है, इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि इस सदी की शुरुआत यानी साल 2000 में दोनों देशों के बीच का कारोबार केवल तीन अरब डॉलर का था जो 2008 में बढ़कर 51.8 अरब डॉलर का हो गया। इस तरह सामान के मामले में चीन अमरीका की जगह लेकर भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया। 2018 में दोनों देशों के बीच कारोबारी रिश्ते नई ऊंचाइयों पर पहुँच गए और दोनों के बीच 95.54 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। कारोबार बढ़ रहा है, इसका यह मतलब नहीं है कि फ़ायदा दोनों को बराबर हो रहा है। भारतीय विदेश मंत्रालय के वेबसाइट के मुताबिक़, 2018 में भारत चीन के बीच 95.54 अरब डॉलर का कारोबार हुआ लेकिन इसमें भारत ने जो सामान निर्यात किया उसकी क़ीमत 18.84 अरब डॉलर थी। इसका मतलब है कि चीन ने भारत से कम सामान ख़रीदा और उसे चार गुने से भी ज़्यादा सामान बेचा। ऐसे में इस कारोबार में चीन को फ़ायदा अधिक हुआ है।
भारत चीन को मुख्य रूप से कॉटन यानी कपास, कॉपर यानी तांबा, हीरा और अन्य प्राकृतिक रत्न, दवाइयां, आईटी सेवाएं, इंजीनियरिंग सेवाएं बेचता है। इसके अलावा चावल, चीनी, कई तरह के फल और सब्ज़ियां, मांस उत्पाद, सूती धागा और कपड़ा भी भारत बेचता है। यहाँ एक और बात जो ध्यान देने वाली है वो ये कि कई सामान जो हम दूसरे देशों को बेचते हैं, उनके लिए कच्चा माल भी हम चीन से ख़रीदते हैं, जैसे दवाइयाँ लेकिन ये भी सच है कि चीन और भारत के व्यापार में संतुलन की कमी है। भारत को अगर किसी देश के साथ सबसे ज़्यादा कारोबारी घाटा हो रहा है तो वह चीन ही है। यानी भारत, चीन से सामान ज़्यादा ख़रीद रहा है और उसके मुक़ाबले बेच बहुत कम रहा है। 2018 में भारत को चीन के साथ 57.86 अरब डॉलर का व्यापारिक घाटा हुआ। साफ़ है कि चीनी सामान को बाय-बाय करने के पहले भारत को उनके दूसरे सस्ते विकल्प तलाशने पड़ेंगे।