गुजरात में कालावड़ गाँव के रहने वाले 72 वर्षीय किसान और इनोवेटर, बच्चूभाई ठेसिया को बचपन से ही पुरानी मशीनों के पुर्जों को इकट्ठा करके कुछ न कुछ जोड़-तोड़ में लगे रहना अच्छा लगता था। कभी स्कूल में एक प्रयोगशाला के लिए पुरानी चीज़ों से रेडियो बनाने वाले बच्चूभाई के बारे में आज भी उनके गाँव के स्कूल में बताया जाता है। फिलहाल, उनके आविष्कारों के चलते उनके नाम दो राष्ट्रीय सम्मान हैं और साथ ही, उन्हें अलग-अलग आयोजनों और कई कृषि मेलों में भी सम्मानित किया गया है। कहते हैं कि ‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है।’ लेकिन यह कहावत कहीं न कहीं बच्चूभाई के सामने छोटी लगती है। क्योंकि उनके लिए आविष्कार करना उनकी ज़िंदगी जीने का तरीका है। वह आज भी हर समय अपने साथ एक डायरी और पेन रखते हैं, ताकि उनके दिमाग में जब भी कोई आईडिया आये तो वह तुरंत उसे लिख लें या फिर उसका सर्किट/चित्र बना लें। उनका वर्कशॉप एकदम उनके कमरे के पास है। इसलिए अगर रात को सोते समय भी उनके दिमाग में कुछ आता है तो वह उसका चित्र बना लेते हैं। और बहुत बार तो वह तुरंत अपने वर्कशॉप में पहुँच जाते हैं उस आईडिया पर काम करने लग जाते हैं।
अपने सफर के बारे में बात करते हुए बच्चूभाई कहते हैं, “मेरे पिता किसानी करते थे पर मुझे हमेशा से ही इलेक्ट्रॉनिक और मैकेनिकल कामों का शौक रहा। मैंने दसवीं तक पढ़ाई की और उसके बाद टीवी और रेडियो सेट आदि ठीक करने का कोर्स किया।” उन्होंने कई सालों तक रेडियो और टीवी की रिपेयरिंग की दुकान चलाई। लेकिन फिर अपने पिता की मृत्यु के बाद उनके कंधों पर खेतों को सम्भालने की ज़िम्मेदारी भी आ गयी। अपनी दूकान के साथ-साथ वह कभी-कभी खेती-बाड़ी का काम करते थे। लेकिन ज़्यादातर उनका ध्यान अपने वर्कशॉप पर ही रहता। “अब जब पिताजी चले गये तो हमारी जो भी थोड़ी-बहुत ज़मीन थी उसे संभालने के लिए मैंने अपनी दूकान बंद कर दी। पूरा वक़्त मैं खेतों को देने लगा और इस दौरान मुझे खेती में आने वाली छोटी-छोटी समस्याओं का पता चला। फिर मैं अपना दिमाग लगाता कि कैसे मुश्किल काम को कम समय में कम मेहनत से कर सकता हूँ। बस वहीं से मेरे आविष्कारों की शुरुआत हुई,” उन्होंने आगे बताया।
बच्चूभाई आविष्कारों सफर छोटे-छोटे यंत्रों से शुरू हुआ। उन्हें मशीनों की भले ही ज्यादा जानकारी नहीं थी पर अगर उनके हाथ में कोई औज़ार हो तो कुछ नया कर दिखाने की चाह पूरी थी। उन्होंने रेडियो ट्रांसमीटर, बीज बोने की रोलिंग मशीन, मूंगफली छीलने की मशीन, गन्ने का रस निकालने की मशीन और बिजली टेस्टर आदि से शुरुआत की।
उनके आविष्कारों की लहर धीरे-धीरे इस कदर फैली कि उनके गाँव के लोग उन्हें ‘बच्चू खोपड़ी’ के नाम से बुलाने लगे। मतलब कि जिसके पास कुछ अलग-हटके करने का दिमाग है। खेती के कामों में सबसे ज्यादा ज़रूरत एक किसान को ट्रैक्टर की रहती है। बड़ी कंपनियों द्वारा बनाए जाने वाले ट्रैक्टर ज्यादा ज़मीन पर खेती करने वाले किसानों के लिए सही हैं। पर छोटे और मध्यम स्तर के किसानों को न तो इतने बड़े ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है और न ही वे लाखों का ट्रैक्टर खरीदने की क्षमता रखते हैं।
बच्चूभाई की खुद की ज़मीन भी मुश्किल से 2 एकड़ है और इसलिए उन्होंने ऐसा कुछ बनाने की सोची, जिससे कि उनकी लागत और मेहनत, दोनों कम हो जाएं। साथ ही, उनकी मशीन खेत के कई काम एक साथ कर दे। “मैंने पुराने स्कूटर और मोटरसाइकिल के पार्ट्स इस्तेमाल किए और अपना ट्रैक्टर बनाया। जैसे बैलों को हम रस्सी की मदद से चलाते हैं बस उसी की तरह इस ट्रैक्टर को मैंने बनाया। इसमें मुझे बहुत वक़्त लगा पर फिर सफलता भी मिली। और इसी इनोवेशन के लिए सबसे पहले मुझे राष्ट्रीय सम्मान मिला,” उन्होंने कहा।
बच्चूभाई के इस ट्रैक्टर में स्टीयरिंग व्हील नहीं है। ड्राइवर के दोनों तरफ दो लीवर लगे हुए हैं। बाईं तरफ के लीवर को खींचिए तो वाहन बाएं मुड़ेगा और दाईं तरफ के लीवर को खींचने पर दाएं। ठीक वैसे ही, जैसे बैलगाड़ी में होता है, लेकिन यह सीधी-सरल फार्म मशीन खेत में बुआई से लेकर गुड़ाई और दूसरी बहुत सी प्रक्रियाएं किसी ट्रैक्टर जैसी ही कुशलता के साथ करती है। इसकी एक खासियत यह है कि यह अपनी जगह पर खड़े-खड़े 360 डिग्री घूम जाता है। वह आगे बताते हैं कि उन्होंने एक डीजल इंजन को पुराने चेसिस पर फिट किया है और इसके गियर बॉक्स को एक रबड़ से ढका है। उनकी यह मशीन मात्र पांच लीटर डीजल में आठ घंटे तक काम कर सकती है।
बच्चूभाई के आविष्कारों का सिलसिला सिर्फ़ एक ट्रैक्टर पर नहीं रुका। उन्होंने स्कूटर के बाद, पुरानी मोटरसाइकिल में जोड़-तोड़ करके जुताई-बुवाई का यंत्र बनाया। यह ट्रैक्टर की ही तरह काम करता था। उन्होंने इसके पिछले हिस्से में स्कूटर के दो छोटे पहिये लगाए ताकि संतुलन बना रहे। इसे तैयार करने में मुश्किल से 15 हज़ार रुपये की लागत आई।
इसकी मदद से खेती के काम में समय की बचत तो हुई ही, साथ ही, यह खेती के काम के लिए किफायती भी साबित हुआ। महज़ 2 लीटर डीजल में यह आठ बीघा ज़मीन को जोत सकता है। उनके इस ट्रैक्टर के फायदे और सफलता देखकर उनके गाँव के छोटे किसानों ने भी बच्चू भाई की मदद से इस तरह का ट्रैक्टर बनाना शुरू किया। उनके मुताबिक, उनके गाँव में लगभग 20 से ज्यादा किसानों के पास ऐसे ट्रैक्टर हैं। ट्रैक्टर के बाद उन्होंने बीजों की समान दूरी पर बुवाई के लिए एक छोटी-सी रोलिंग मशीन बनाई। इसके लिए एक पीवीसी पाइप का इस्तेमाल किया। उनका यह इनोवेशन भी किसानों के लिए काफी मददगार साबित हुआ। क्योंकि संतुलित मात्रा में बीज खेतों में बिखेरने से पौधों तक समान रूप से हवा पहुँचती है और हर एक पौधे को पनपने के लिए समान जगह और पोषण मिलता है।
बच्चूभाई का हर एक आविष्कार किसानों और गाँव के लोगों के हित में रहा। पर उन्होंने कभी भी अपने हुनर को सिर्फ पैसे कमाने का ज़रिया नहीं बनने दिया। उनका एक इनोवेशन पूरा होता तो वे दूसरे में जुट जाते। यहाँ तक कि ज्ञान संस्था के सम्पर्क में आने के बाद जब उनके इनोवेशन के चर्चे राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचे तो उन्हें बड़ी कंपनियों से ऑफर भी आये। पर उन्हें किसी के लिए काम करने से ज्यादा अपने मन-मुताबिक काम करना भाया।
खेती के छोटे-बड़े यंत्रों के साथ-साथ बच्चूभाई ने एक कस्टमाइज्ड बल्ब भी बनाया। इस बल्ब की खासियत है कि यह 35 से 40 साल तक चलता है और फ्यूज नहीं होता। बच्चूभाई बताते हैं, “गाँवों में ज़्यादातर लोग बल्ब ही इस्तेमाल करते हैं चाहे घर हो या फिर खेत। बार-बार फ्यूज होने वाले बल्ब भी उनके लिए परेशानी का कारण बन जाते हैं। इसलिए मैंने बल्ब का सर्किट थोड़ा बदलकर उसे इस तरह से बनाया कि यह 35-40 साल तक चल सकता है।” उनके इस बल्ब की मांग सिर्फ गुजरात में ही नहीं है बल्कि दूसरे राज्यों से भी लोग उनसे यह बल्ब खरीदते हैं। इस बल्ब के अलावा खेतों को पशुओं के आक्रमण से बचाने वाली उनकी झटका मशीन भी किसानों में अच्छी-खासी मशहूर है।
किसानों को खेती के लिए ज़मीन, पानी, कीट आदि की समस्या के साथ और भी बहुत-सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। और तैयार खड़ी फसल को नीलगाय, जंगली सूअर जैसे जानवरों द्वारा रौंदा जाना बहुत ही आम समस्या है। इसके लिए किसान बहुत तरह के जतन करते हैं। रात को खेतों में जागकर पहरा देते हैं तो बहुत बार खेत के चारों ओर इलेक्ट्रिक फेंसिंग लगाते। और इस इलेक्ट्रिक फेंसिंग की वजह से जानवरों के साथ-साथ कई बार खुद किसानों की जान भी जाती है। किसानी की इस मुश्किल को समझकर बच्चूभाई ने एक बार फिर अपने जुगाड़ी दिमाग से इसका हल निकाला।
उन्होंने बैटरी से चलने वाली ऐसी झटका मशीन बनाई जोकि एक बार चार्ज होने के बाद कई दिनों तक काम करती है। इस पोर्टेबल मशीन को कहीं भी रखकर इसका कनेक्शन आप खेतों के चारों ओर लगी लोहे की तारों की फेंसिंग से कर सकते हैं। इसमें से निकलने वाला करंट जानवरों को हल्का-सा झटका देता है, जिससे वे दूर भाग जाते हैं।
इस तरह से यह झटका मशीन जानवरों को कोई भी नुकसान पहुंचाए बिना उन्हें फसलों से दूर रखती है। अपनी इस मशीन के बारे में वह कहते हैं, “जब मुझे पता चला कि बिजली की तारों की वजह से बहुत से जानवर मर जाते हैं तो मुझे लगा कि यह गलत है। वे तो बेजुबान हैं पर हम तो सब जानते हैं। इसलिए मैंने ऐसी मशीन बनायीं जो उनको कोई नुकसान न पहुंचाए और किसान को भी नुकसान से बचाए।”
उनकी इस मशीन की टेस्टिंग के बाद गुजरात सरकार ने इसे इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी। आज यह झटका मशीन सिर्फ गुजरात में ही नहीं बल्कि नेपाल तक अपनी पहचान बना चुकी है। बच्चूभाई की झटका मशीन इस कदर मशहूर हुई कि उनके बेटों ने इसके बल पर अपने भविष्य की नींव रखी। जब झटका मशीन की मांग बढ़ने लगी तो बच्चूभाई के बेटे, पंकज और अल्तेश ने मिलकर ‘विमोक्ष इनोवेशन’ नाम से वर्कशॉप और कंपनी की शुरुआत की। इसके ज़रिए वे अपने पिता द्वारा किये गये आविष्कारों को मार्किट तक पहुंचा रहे हैं। उनके प्रोडक्ट्स ने बहुत ही कम समय में अपनी जगह देशभर के किसानों के बीच बना ली है। “मेरी सफलता का सबसे बड़ा कारण मेरे परिवार का साथ है। मुझे बाहर के लोगों ने भले ही निराश किया पर मेरे घर में सबने हौसला ही बढ़ाया। मैं सिर्फ आविष्कार करना जानता हूँ पर उन्हें सही पहचान मेरे बेटों की वजह मिल रही है,” बच्चूभाई गर्व से कहते हैं।
बच्चूभाई के बहुत-से इनोवेशन भले ही लोगों को साधारण लगें, पर उनके आविष्कारों की असाधारण बात यह है कि वे किसी न किसी समस्या का हल हैं। बेशक, क्रियात्मक और रचनात्मक सोच रखने वाले लोगों को यदि सही साथ और राह मिले तो वे भी बच्चूभाई की तरह समाज में बदलाव की वजह बन सकते हैं।