इस समय राष्ट्रीय स्तर पर विशेषज्ञ एक सबसे महत्वपूर्ण सवाल उठा रहे हैं कि उत्तराखंड के दवा नियंत्रक से क्या पतंजलि को कोरोना की दवा कोरोनिल बनाने की अनुमति मिली थी, यदि हां, तो आखिर वह अनुमति कैसे दे दी गई? आयुष मंत्रालय ने भी उत्तराखंड के लाइसेंसिंग प्राधिकरण से विवरण मांगा है, किस आधार पर औषधि निर्माण की मंजूरी दी गई थी।
पतंजलि के बाबा दावा करते हैं कि उनके द्वारा बनाई गई दो दवाओं कोरोनिल और स्वशिर वटी के इस्तेमाल से शुरुआती तीन दिनों में कोविड-19 के 65 फीसदी मरीजों को ठीक किया है और सातवें दिन तक सौ फीसदी मरीज स्वस्थ हुए हैं। सवाल उठ रहे हैं कि दवा के प्रयोग से सिम्पटमेटिक से एसिम्पमेटिक लक्षण प्रदर्शित हो जाने भर से क्या हम मरीज को वायरस मुक्त मान लेगें? इस सवाल के जवाब में अमर जेसानी (जो एक बायोएथिक्स के स्वतंत्र विशेषज्ञ हैं) का मानना है कि ऐसा नहीं माना जा सकता है, जब तक मरीजों पर कोरोना का आवश्यक टेस्ट न किया जाए। सवाल उठता है, तो क्या यह मंत्रालय के आदेश का उल्लंघन है?
इस बीच आयुष मंत्रालय का बयान इंगित करता है कि पतंजलि ने उसे सूचित किए बिना दवा के प्रचार को आगे बढ़ाने का फैसला किया, यह कोविड दवाओं पर शोध के संबंध में 21 अप्रैल, 2020 को जारी मंत्रालय के आदेश का उल्लंघन था। आदेश में कहा गया था कि प्रचार से आगे बढ़ने से पहले संगठनों को मंत्रालय को सूचित करना अनिवार्य है। इस बयान में 1 अप्रैल, 2020 के एक अन्य आदेश का भी संदर्भ दिया गया, जिसमें विशेष रूप से टीवी, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कोविड-19 संबंधित किसी भी उपचार के ‘झूठे दावों’ के प्रचार पर रोक लगाई गई थी। ऐसा करने से राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के दिशानिर्देशों के तहत दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
मंत्रालय ने अब पतंजलि को दवा के परीक्षण, परीक्षण के प्रोटोकॉल (परीक्षण के दौरान बरती गई सावधानियां) और सैंपल साइज के साथ ही परीक्षण के परिणामों सहित विवरण प्रस्तुत करने के लिए कहा है। पतंजलि यह एक निजी संस्थान है, जो 2009 में स्थापित किया गया था। इस संस्थान को औषधि परीक्षण (ड्रग ट्रायल) करने में किसी भी पूर्व अनुभव के बारे में इसकी वेबसाइट कुछ भी दावा नहीं करती है। सीटीआरआई को खंगालने पर पता चलता है कि अब तक इस संस्थान ने केवल दो बार दवा परीक्षणों के लिए पंजीकृत किया है। एक पंजीकरण अवसाद के इलाज की दवा के लिए है और दूसरा कोविड-19 की औषधि के लिए है। यह परीक्षण भी जून 2020 में पंजीकृत किया गया था। हालांकि,यह आरसीटी नहीं था, जिसमें गहन अनुसंधान शामिल है।
विशेषज्ञ इस पर कई सवाल उठाते हुए कहते हैं कि कोई व्यक्ति कैसे कोविड-19 का इलाज ढूंढ़ने जैसे दावे कर सकता है, इसे घंटों तक प्रचारित करें और बीमारी के बारे में और ज्यादा भ्रम पैदा करे। जेसानी का कहना है कि भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल (डीजीसीआई) कार्यालय को यह बताना होगा कि उत्तराखंड की शाखा ने किस आधार पर औषधि निर्माण की मंजूरी दी है? एक ओर पतंजलि आयुर्वेद द्वारा जारी बयान में रामदेव के हवाले से कहा गया है, “सात दिनों के भीतर देश के हर जिले और ब्लॉक मुख्यालयों में पतंजलि स्टोरों में दवा उपलब्ध होगी।” जबकि नियमानुसार बड़े पैमाने पर दवा बनाने और बेचने के लिए राज्य दवा नियंत्रक से अनुमति की आवश्यकता होती है।
ऐसे में मात्र विशेषज्ञ ही नहीं, बल्कि आयुष मंत्रालय ने भी उत्तराखंड के लाइसेंसिंग प्राधिकरण से विवरण मांगा है, जिसके आधार पर औषधि निर्माण की मंजूरी दी गई थी। कहा जा रहा है कि यदि पतंजलि आयुर्वेद ने राज्य दवा नियंत्रक को परिणाम प्रस्तुत किए हैं, तो उन परिणामों को सार्वजनिक करें। इसे छिपाया क्यों जाना चाहिए?