उत्तराखंड में 8 जून से चार धाम यात्रा यद्यपि पूरी सावधानी से शुरू होने की बातें हो रही हैं लेकिन एक सबसे बड़ा ये सवाल राज्य के हर जागरूक नागरिक का पीछा कर रहा है कि राज्यों की अनुमति से जिस तरह प्रवासियों के लौटने पर कोरोना संकट ने संक्रमितों की संख्या सौ से एक हजार के पार पहुंचा दी है, क्या वही असावधानियां चारो धामो, राज्य के पर्यटन केंद्रों के लिए उमड़ आने वाली भीड़ से मुमकिन नहीं है। तुष्टीकरण में कहीं किसी बड़ी आफत से और अधिक लेनी की देनी न पड़ जाए। गौर कीजिएगा कि लाख चेतावनियों, कार्रवाइयों के बावजूद आज भी 60-70 फीसदी लोग मास्क नहीं लगा रहे हैं। बाकियों में भी दस परसेंट के चेहरे पर मास्क ठुड्ढियों के नीचे शोभा बढ़ाता रहता है। अब इसमें किसका दोष माना जाए, सरकार-प्रशासन का, या आम नागरिकों का, और इस बात की क्या गारंटी की ऐसे नजारे चार धाम यात्राओं में देखने को नहीं मिलेंगे। फिर हर बात पर बात होगी कि ये तो आस्था से खिलवाड़ हो रहा है, हमारे समाज में निठल्ले का चिंतन तो जमाने से चला ही आ रहा है।
लॉकडाउन के बाद देश-दुनिया के नजारे पूरी तरह बदल जाने वाले हैं। रहन-सहन की बदलती तमीज के साथ जो लोग अपने को नहीं बदल पाएंगे, बदलते समाज और संस्कृति में अपने को नहीं ढाल पाएंगे, उनके लिए मुफ्त की दुश्वारियां बढ़ती जाएंगी। लॉकडाउन के कारण भारत में खेलकूद की कई जगहें अभी भी बंद हैं और कुछ हर-भरे इलाक़ों को दोबारा खोला गया है ताकि सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन किया जा सके। तीर्थस्थलों पर अब आगे खूब चौकन्ना रहना होगा। आस्था भावुक कर देती हैं, ऐसे में भावनाओं पर काब रखते हुए दिमाग की खिड़कियां खुली रखनी होंगी।
यद्यपि उत्तराखंड में चार धाम यात्रा की शुरुआत सीमित संख्या से होगी। दूसरे राज्यों से बसों के संचालन की अनुमति मिलने के बाद चारधाम यात्रा को दूसरे राज्यों के पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों के लिए खोला जाएगा। दूसरे राज्यों की आपसी सहमति के बाद ही बसों के संचालन का फैसला लिया जाएगा। कोरोना महामारी के कारण प्रदेश के प्रसिद्ध धाम गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बदरीनाथ के कपाट खुलने के बाद ही यात्रा का संचालन पूरी तरह से बंद है। उत्तराखंड में बद्रीनाथ धाम के कपाट एक लंबे शीतावकाश के बाद 15 मई को तड़के खोल दिए गए थे लेकिन लॉकडाउन के चलते इस मौके पर बदरीनाथ में कोई मौजूद नहीं रहा। महज गिनती के ही लोग मंदिर में दिखे, जबकि पिछले साल कपाट खुलने के बाद पहले दिल लगभग 10,000 श्रद्धालुओं ने मंदिर के दर्शन किए थे।
फिलहाल, देश-दुनिया के ताज़ा हाल ये हैं कि पार्कों में घास पर सर्कल बनाए जाने लगे हैं, जिसमें लोग दूर-दूर रहने के नियमों का पालन करते हुए पिकनिक मना सकें, धूप सेंक सकें। याद करिए उन दिनों को जब पार्क में परिवार एक साथ बैठा करते थे और चहलकदमी करते हुए लोगों की आवाज़ें सुनाई देती थीं। लॉकडाउन के दौरान बहुत सारे लोग घर से काम कर रहे हैं और अपने सहकर्मियों के साथ वीडियो कॉल के ज़रिए जुड़ रहे हैं लेकिन जैसे चीज़ें दोबारा शुरू होंगी तो दफ़्तरों को भी वैसे ही बनाना होगा। दुकानों से ख़रीदारी का तरीक़ा भी बदल रहा है। ऑनलाइन ख़रीदारी में बढ़ोतरी हो रही है और सुपरमार्केट्स में ख़रीदारी के लिए लोगों को लाइन में लगना पड़ रहा है ताकि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जा सके।
एक सवाल ये भी बनता है कि क्या हम रेस्तरां में दोबारा अपने प्रियजनों के साथ वैसे ही खाना खा पाएंगे, जैसे पहले का माहौल होता था? लॉकडाउन के बाद से सोशल डिस्टेंसिंग लागू करने के लिए कार्डबोर्ड और प्लास्टिक शीट के ज़रिए अलग किए गए टेबल पर लोग खाना खा रहे हैं। कई सारे रेस्तरां सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को लागू करने के लिए टेबल या ब्लॉकिंग सीट पर प्लास्टिक के ज़रिए विभाजन कर रहे हैं।
हालांकि, ज़िंदगी इस समय अजब दौर से गुज़र रही है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जो चीज़ें हमारी चहेती हैं, उनका हम लुत्फ़ न लें, जैसे कि संगीत। इसका मतलब है कि कॉन्सर्ट आने वाले समय में अलग तरीक़े से होगा। लोग अपनी कार में बैठे-बैठे संगीत का लुत्फ़ लिया करेंगे और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी होगा। तीर्थस्थलों पर उमड़ने वाली भीड़ के नजारे भी अब पहले जैसे नहीं होंगे। व्यवस्थाएं राज्य और प्रशासन की कड़ी निगरानी में होने का तकाजा रहेगा। निश्चित ही इससे एक बाद साफ है कि इसका गंभीर असर अनलॉक-1 खुलने के बाद भी पर्यटन राजस्व में भारी गिरावट के रूप में दर्ज होगा। हां, एक बात जरूर हो सकती है कि धामों, मंदिरों, मठों, धर्मस्थलों, घाटों पर वॉरियर्स के रूप में नौकरियों और रोजगार का इजाफा होना तय है।