सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग ने कहा है कि पिछले चार सप्ताह से चीन के इरादों को लेकर साफ चेतावनी के बावजूद सीमा पर जवानों की इतनी बड़ी संख्या में जानें चली जाना बेहद दर्दनाक है। लद्दाख में लगभग 40 दिनों से जारी गतिरोध ने अब एक खतरनाक मोड़ ले लिया है। कम से कम 40 सालों में ऐसा पहला मौका माना जा रहा है, जब दोनों देशों के बीच असल नियंत्रण रेखा पर जानें गई हैं। इस बीच अमेरिका ने कहा है- ‘दोनों देशों के बीच जारी तनाव पर हमारी पैनी नजर है। भारतीय सेना के 20 जवान मारे गए हैं। अमेरिका इस पर शोक व्यक्त करता है। हमारी संवेदनाएं सैनिकों के परिवारों के साथ हैं।’
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारतीय समय के अनुसार रात 11.30 बजे व्हाइट हाउस में एक अहम मीटिंग की। इसमें इंटेलिजेंस एजेंसियों ने भारत-चीन विवाद पर रिपोर्ट पेश की। विदेश मंत्री माइक पोम्पियो भी मीटिंग में शामिल थे। मीटिंग के बाद एक बयान जारी किया गया- ‘भारत और चीन दोनों ने तनाव कम करने की बात कही है। अमेरिका इस मसले के शांतिपूर्ण समाधान के हक में है। राष्ट्रपति ट्रम्प और प्रधानमंत्री मोदी के बीच 2 जून को फोन पर बातचीत हुई थी। इस दौरान भारत-चीन सीमा विवाद पर भी बातचीत हुई थी।’ न्यूज एजेंसी के मुताबिक, गालवन वैली में जिस पेट्रोल प्वॉइंट 14 के करीब दोनों देशों के सैनिकों की बीच हिंसक झड़प हुई थी, अब वहां शांति है। दोनों देशों की सैन्य टुकड़ियां पीछे हट गई हैं। यूएन महासचिव के प्रवक्ता ने भी भारत और चीन सीमा विवाद पर टिप्पणी की। कहा- हमने एलएसी पर हो रही घटनाओं के बारे में जानकारी हासिल की है। दोनों देशों से अपील है कि वो संयम दिखाएं। यह अच्छी बात है कि दोनों ही देश तनाव कम करने की बात कर रहे हैं।
अभी यह पूरी तरह से साफ नहीं हो पाया है कि मौके पर गोलियां चली थीं या सिपाही सिर्फ हाथापाई में ही मारे गए। बताया जा रहा है कि तनाव को कम करने के लिए दोनों देशों के बीच सैन्य और कूटनीतिक दोनों स्तर पर बातचीत चल रही है। लद्दाख में दोनों देशों के बीच पांच मई से कम से कम चार अलग अलग इलाकों में गतिरोध चल रहा है। सबसे पहले गतिरोध की खबर पैंगोंग झील से आई थी, जहां दोनों सेनाओं के बीच हाथापाई की अनौपचारिक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी। उसके बाद से तना-तनी अभी तक बनी हुई है। पिछले कुछ दिनों से दोनों देशों के बीच सैन्य स्तर पर बातचीत चल रही थी और कहा जा रहा था कि कम से कम गलवान घाटी में दोनों सेनाएं अपनी अपनी जगहों से पीछे हटने लगी हैं लेकिन कई समीक्षक लगातार कह रहे थे कि चीन के सैनिक बड़ी संख्या में भारतीय इलाके में घुस आए हैं और वो पीछे नहीं हट रहे हैं। ताजा हालात पर भी जानकारों का कहना है कि स्थिति अत्यंत संवेदनशील बन चुकी है। भारतीय सेना से सेवानिवृत्त अधिकारी और रक्षा मामलों के विशेषज्ञ अजय शुक्ला ने ट्वीट कर के कहा कि ये बेहद दुखद इसलिए भी है क्योंकि गलवान वैली वो इलाका है जो 1962 से भारत के नियंत्रण में रहा है।
तकरीबन 3500 किलोमीटर की साझी सीमा को लेकर दोनों देशों ने 1962 में जंग भी लड़ी लेकिन विवादों का निपटारा ना हो सका। दुर्गम इलाका, कच्चा पक्का सर्वेक्षण और ब्रिटिश साम्राज्यवादी नक्शे ने इस विवाद को और बढ़ा दिया। दुनिया की दो आर्थिक महाशक्तियों के बीच सीमा पर तनाव उनके पड़ोसियों और दुनिया के लिए भी चिंता का कारण है।
हल्द्वानी जिला सैनिक लीग के जिलाध्यक्ष रिटायर्ड मेजर बीएस रौतेला कहते हैं कि चीन से लोहा लेने के लिए हमारे जांबाज सक्षम हैं। अगर युद्ध हुआ तो चाीन को मुंह की खानी पड़ेगी। चीनी उत्पादों का बहिष्कार कर हर भारतीय चीन की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने में अपना योगदान दे। रिटायर्ड मेजर जनरल आइजेएस बोरा कहते हैं कि दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व स्तर पर इस तनाव को कम करने के लिए वार्ता होनी चाहिए। युद्ध की स्थिति किसी भी देश के लिए अच्छी नहीं हैं। यदि सभी प्रयासों के बाद भी हालत नहीं सुधरे तो हमें पूर्ण रूप से तैयार रहना चाहिए। रिटायर्ड ब्रिगेडियर आइएस पिलख्वाल शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए कहते हैं कि चीन हम पर दबाव बनना चाह रहा है। हमारी सेना चीनी सेना को मुहतोड़ जबाव देने के लिए सक्षम है। रिटायर्ड ब्रिगेडियर डीके जोशी का कहना है कि इस सीमा विवाद के पीछे कई अंतरराष्ट्रीय कारण हैं। हमें चीनी सामान का बहिष्कार करना चाहिए। रिटायर्ड ग्रुप कैप्टन एसएस रावत कहते हैं कि चीन ने अंतरराष्ट्रीय कानून का खुला उललंघन किया है। उसने भारत के योद्धाओं की निर्मम हत्या कराई है। चीन को ये दुस्साहक काफी महंगा पड़ेगा।