कोरोना संकट के बीच एक तरफ दुनियाभर में स्वास्थ्य कर्मियों को जहां कोरोना वॉरियर्स के रूप में सम्मानित किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ उनके साथ मारपीट और हिंसा की घटनाएं भी लगातार बढ़ती जा रही हैं। अकेले भारत में ही अब तक दर्जन भर से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। इनमें डॉक्टर्स पर हमला करने से लेकर उन्हें अपशब्द कहने, उन पर थूकने व घरों से बाहर निकालने तक के मामले शामिल हैं। आर्म्ड कॉन्फ्लिक्ट लोकेशन एंड इवेंट डेटा प्रोजेक्ट (एसीएलईडी) विकासशील दुनिया में होने वाली राजनीतिक हिंसा की घटनाओं और उनके विश्लेषण को कवर करती है।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, भारत में कुल 11.59 लाख एलोपैथिक डॉक्टर पंजीकृत हैं। जनंसख्या के अनुसार देखा जाए तो भारत में 1445 लोगों पर सिर्फ 01 डॉक्टर है। डॉक्टरों की कमी, अशिक्षा, अस्पतालों पर मरीजों का बोझ डॉक्टरों से मारपीट व अभद्रता के मुख्य कारण हैं। 2017 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने देश के 1681 डॉक्टर्स पर एक सर्वे किया था। इसमें 82.7 प्रतिशत डॉक्टर्स ने यह कहा था कि उन्हें इस पेशे में तनाव का सामना करना पड़ रहा है। 46.3 प्रतिशत डॉक्टर्स मानते हैं कि हिंसा उनके तनाव का मुख्य कारण है। 62.8 प्रतिशत कहते हैं कि वे हिंसा के भय के बीच मरीज देखते हैं। 57.7 प्रतिशत डॉक्टर्स सिक्योरिटी लेने के बारे में सोचते हैं। 38.0 प्रतिशत हेल्थ वर्कर्स हिंसा का सामना करते हैं।
एसीएलईडी की एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, 19 फरवरी से अब तक 45 दिन में दुनियाभर में डॉक्टर्स के विरुद्ध हुई हिंसा की कुल घटनाओं में 68 प्रतिशत तो अकेले भारत में हुई हैं। मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तरप्रदेश, बैंग्लुरु जैसे राज्य इनमें शामिल हैं। कहने को डॉक्टर्स की सुरक्षा के लिए देश के 23 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदशों में अलग-अलग कानून हैं, लेकिन ये पूरी तरह निष्प्रभावी हैं। यह इसलिए क्योंकि, आज तक एक भी आरोपी को इन कानूनों के तहत सजा नहीं दी जा सकी है। डॉक्टर्स में असुरक्षा इस कदर हावी हो गई है कि अपनी जान जोखिम में डालकर कोरोना मरीज का इलाज करने वाले इन वॉरियर्स को सुरक्षा के लिए विरोध प्रदर्शन का रास्ता अपनाना पड़ा।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के आह्वान पर 22 अप्रैल को देशभर में कैंडल जलाकर विरोध जताने का निर्णय लिया गया। हालांकि, महामारी के बीच डॉक्टर्स के विरोध प्रदर्शन की जानकारी होते ही केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सुरक्षा का आश्वासन देकर इसे रुकवाया। इसके बाद केंद्र सरकार ने उनकी सुरक्षा को लेकर सख्त कदम उठाते हुए एक अध्यादेश जारी किया। 23 अप्रैल को लगभग 123 साल पुराने महामारी अधिनियम में कई बड़े बदलाव किए गए। इसमें अब 7 साल तक की सजा और 5 लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। जानकारी के अनुसार, गुजरात में इस कानून के तहत पहला मामला दर्ज कर लिया गया है।
एसीएलईडी की रिपोर्ट के अनुसार, इंदौर में महिला स्वास्थ्य कर्मियों पर जांच करने के दौरान भीड़ ने पत्थरों से हमला कर दिया था। इस दौरान महिला स्वास्थ्य कर्मियों ने भाग कर अपनी जान बचाई थी।
विगत 22 अप्रैल को केंद्र सरकार ने “महामारी अधिनियम 1897” में संशोधन किया है। इसके तहत स्वास्थ्य कर्मियों पर हमला करने वालों को सात साल तक की सजा और 5 लाख तक का जुर्माना भुगतना पड़ सकता है। स्वास्थ्यकर्मी की गाड़ी या क्लीनिक को नुकसान पहुंचाने वाले को संपत्ति के बाजार मूल्य से दोगुनी राशि का भुगतान करना होगा। पुराने कानून में मामले का फैसला आने की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं थी लेकिन, नए कानून में स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ हुई हिंसा को गैर – जमानती अपराध बनाने के साथ ही 30 दिन के भीतर चार्जशीट दाखिल करने का नियम भी जोड़ा गया है। साथ ही मामले का फैसला आने की समय सीमा (1 साल) भी निर्धारित कर दी गई है। 2007 में आंध्रप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वायएस राज शेखर रेड्डी ने डॉक्टर्स के खिलाफ हिंसा के विरुद्ध पहला कानून लागू किया था। इसे वाइलेंस अगेंस्ट हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स एंड स्टेब्लिसमेंट एक्ट नाम दिया गया। इसके तहत तीन साल तक की सजा और 50,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान रखा गया। इसके बाद दिल्ली, हरियाणा समेत 22 राज्यों में इसी तरह के विभिन्न कानून लागू किए जा चुके हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने सितंबर 19 में ‘हेल्थकेयर सर्विस पर्सनल एंड क्लिनिकल एस्टेबलिस्मेंट एक्ट- 2019’ का ड्राफ्ट जारी किया था। विधेयक को कानून और वित्त मंत्रालय से मंजूरी मिल गई। लेकिन गृह मंत्रालय ने इसे पुनर्विचार के लिए यह कहते लौटा दिया कि मौजूदा आईपीसी, सीआरपीसी में पर्याप्त प्रावधान हैं। इससे मामला अटक गया।