वाशिंगटन विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट ऑफ हैल्थ मैट्रिक्स ऐंड इवेल्यूएशन के शोधकर्ताओं के मुताबिक पांच करोड़ से अधिक भारतीयों के पास हाथ धोने की ठीक व्यवस्था नहीं है जिसके कारण उनके कोरोना वायरस से संक्रमित होने और उनके द्वारा दूसरों तक संक्रमण फैलने का जोखिम बहुत अधिक है। शोध में पता चला कि 46 देशों में आधे से अधिक आबादी के पास साबुन और साफ पानी की उपलब्धता नहीं है। इसके मुताबिक भारत, पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, नाइजीरिया, इथियोपिया, कांगो और इंडोनेशिया में से प्रत्येक में पांच करोड़ से अधिक लोगों के पास हाथ धोने की सुविधा नहीं है।
भारत के नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस की कुछ वक़्त पहले की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के 35.8 प्रतिशत लोग साबुन और डिटर्जेंट से हाथ धोते हैं, जबकि 60.4 प्रतिशत लोग सिर्फ पानी से हाथ धोते हैं। इनमें से 56 प्रतिशत शहरी और 25.3 प्रतिशत ग्रामीण आबादी साबुन और डिटर्जेंट तथा 42.1 प्रतिशत शहरी और 69.9 प्रतिशत ग्रामीण आबादी केवल पानी से हाथ धोती है। 74 प्रतिशत परिवार शौच के बाद साबुन या डिटर्जेंट से हाथ धोते हैं, जबकि 13.4 प्रतिशत परिवार शौच के बाद केवल पानी से ही हाथ धोते हैं।
जर्नल ‘एनवायर्नमेंट हेल्थ पर्सपेक्टिव’ में प्रकाशित एक स्टडी में बताया गया है कि विश्व के 200 करोड़ लोगों के पास हाथ धोने की सुविधाएं नहीं हैं। उनमें से 50 प्रतिशत आबादी उप-सहारा अफ्रीका और ओशिनिया में निवास करती है। रिपोर्ट के अनुसार साउथ एशिया की 37.2 प्रतिशत, नार्थ अफ्रीका और मध्य ईस्ट की 21.1 प्रतिशत, ट्रॉपिकल लैटिन अमेरिका की 13.8 प्रतिशत, सेंट्रल लैटिन अमेरिका की 10.6 प्रतिशत, अंडियन लैटिन अमेरिका की 12.9 प्रतिशत, कैरिबियन की 34.1 प्रतिशत, वस्टर्न यूरोप की 0.9 प्रतिशत, ईस्ट एशिया की 7.7 प्रतिशत, साउथ-ईस्ट एशिया की 16.6 प्रतिशत, सेंट्रल एशिया की 7.8 प्रतिशत, सेंट्र यूरोप क 2.8 प्रतिशत, ईस्टर्न यूरोप की 3.9 प्रतिशत और ओशिनिया की 56.6 प्रतिशत आबादी के पास हाथ धोने की सुविधा नहीं है।
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में अगर निरंजनपुर सब्जी मंडी से फैलते संक्रमण की गंभीरता से शासन स्तर पर छानबीन नहीं हुई, साफ-सफाई का पर्याप्त ध्यान नहीं रखा गया तो कोरोना का प्रभाव किसी भी हद तक जा सकता है, क्योंकि हर घर को सब्जी चाहिए और हर मोहल्ले में सब्जियों की ठेलियां घूम रही हैं। एक हफ्ते में मंडी के अंदर सात लोग कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। हालांकि, अभी यह भी नहीं कहा जा सकता कि यहां कितने और लोग संक्रमित हो चुके हैं। साथ ही अब तक पाए गए संक्रमित किन-किन लोगों के संपर्क में आ चुके हैं। इसीलिए मंडी के माध्यम से पूरे शहर में संक्रमण फैलने का खतरा बन गया है। शुरू से ही हाई रिस्क एरिया रही मंडी में एहतियात को उठाए जाने वाले कदमों पर सिस्टम गंभीर नहीं रहा है। मंडी समिति ने यहां सुरक्षा के तमाम इंतजाम करने का दावे किए, लेकिन स्वास्थ्य विभाग ने यहां समय पर सैंपलिंग तक की जरूरत महसूस नहीं की है। अब जाकर कल को मंडी समिति अध्यक्ष राजेश शर्मा ने आढ़तियों के साथ बैठक में निर्णय लिया कि मंडी में हफ्ते में दो दिन सैनिटाइजेशन किया जाए। मंडी में बढ़ रहे कोरोना के मामलों को देखते हुए नियमित सैनिटाइजेशन किया जा रहा है, लेकिन रोजाना यहां कारोबार के चलते सैनिटाइजेशन को पर्याप्त समय नहीं मिल पा रहा है।
फिलहाल, इस समय सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य महाराष्ट्र, तमिलनाडु, दिल्ली, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश और बिहार हैं। इनमें से तमिलनाडु, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और आंध्रप्रदेश में जितने मरीज अस्पताल में भर्ती हैं, उनसे ज्यादा ठीक हो चुके हैं। आंध्रप्रदेश में 66, राजस्थान में 60 और उत्तर प्रदेश में 59 प्रतिशत मरीज ठीक हो चुके हैं।
संक्रमित हुए मरीज और उसकी तुलना में ठीक हुए मरीजों की संख्या देखें तो सबसे ज्यादा 66% लोग आंध्रप्रदेश में और इसके बाद 60% राजस्थान में ठीक हुए हैं। यहां भी महाराष्ट्र 31% के साथ सबसे नीचे है। आंध्रप्रदेश इस हिसाब से भी बेहतर है कि वहां उससे अधिक प्रभावित राज्यों की तुलना में टेस्ट ज्यादा हो रहे हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने दो दिन पहले ही कहा था कि देश में जरूरत के हिसाब से टेस्टिंग की जा रही है। जोखिम वाले या फिर बीमारी के लक्षण वाले लोगों को प्राथमिकता दी जा रही है। स्थिति को देखते हुए समय-समय पर स्ट्रैटजी बदली जाती है। हर रोज 1.60 लाख टेस्ट करने की कैपेसिटी है। अब तक 32 लाख 44 हजार 884 टेस्ट किए गए हैं। उन्होंने कहा कि 1.3 अरब की आबादी का बार-बार टेस्ट करेंगे तो ये न सिर्फ महंगा पड़ेगा, बल्कि संभव भी नहीं हो पाएगा।
डॉक्टर चेतावनी दे रहे हैं कि लॉकडाउन में लोगों के एकसाथ ऐसा करने से कोरोना वायरस महामारी के सामुदायिक संक्रमण का खतरा है लेकिन इन मजदूरों की व्यथा यह है कि इन्हें भूख और बेकारी के चलते पलायन करना पड़ रहा है। इसके चलते अब गांवों तक कोरोना का संक्रमण पहुंच गया है। उदाहरण के लिए बिहार में कोरोना मरीजों के आंकड़ों पर नजर डालें तो 15 मई को जहां प्रदेश में महज 1000 पॉजिटिव केस आए थे, वहीं एक हफ्ते के अंदर ही ये बढ़कर 2100 का आंकड़ा पार गया है। बिहार हेल्थ सोसाइटी के मुताबिक, तीन मई से अब तक बिहार लौटे 1184 प्रवासी मजदूरों में कोरोना वायरस संक्रमण की पुष्टि हो चुकी है।