भले संसदीय समिति ने ऐसे अफसरों पर सख्त कार्रवाई की सिफारिश कर रखी हो, भारत के करीब 300 आईएएस अधिकारी निजी संपत्तियों का खुलासा नहीं कर रहे हैं, जबकि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग पिछले तीन महीनों में कई रिमांइडर भेज चुका है। इनमें 10 आईएएस अधिकारी उत्तराखंड के हैं।
कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के निर्देशों के मुताबिक, हर साल 31 जनवरी तक पिछले वर्ष की अचल संपत्तियों की जानकारी एक निर्धारित प्रोफॉर्मा पर देनी पड़ती है, जिसे इमूवेबल प्रॉपर्टी रिटर्न (आईपीआर) कहते हैं। आईएएनएस ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की वेबसाइट की पड़ताल की तो पता चला कि करीब 300 आईएएएस अफसरों ने अचल संपत्तियों की जानकारी नहीं दी है।
उत्तर प्रदेश के सबसे ज्यादा 68 आईएएएस अफसरों ने संपत्ति का अब तक खुलासा नहीं किया है। इसी तरह पश्चिम बंगाल के 14, उत्तराखंड के 10, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ के छह-छह, मध्य प्रदेश के 11, कर्नाटक के छह, बिहार के 25 और केंद्रशासित प्रदेश कैडर के 24 व आंध्र प्रदेश के 33 आईएएएस अफसरों ने अचल संपत्तियों की जानकारी नहीं दी है।
उत्तर प्रदेश कैडर के 72 आईएएस अफसरों ने वर्ष 2018 में अर्जित संपत्तियों की भी जानकारी नहीं दी। अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियमावली, 1968 के नियम 16(2) के तहत अधिकारियों को जमीन, जायदाद, घर आदि संपत्तियों के बारे में एक निर्धारित प्रोफॉर्मा पर सूचना देनी होती है। इसमें संपत्ति और उसे खरीदने के लिए धन के स्त्रोत के बारे में भी बताना होता है। संपत्ति की मौजूदा समय में क्या कीमत है, इसका भी अपडेट देना होता है। हर साल एक से 31 जनवरी के बीच पिछले वर्ष तक की अचल संपत्तियों की सूचना देनी होती है।
डीओपीटी के सूत्रों का कहना है कि इस संबंध में बहुत पहले 29 अक्टूबर 2007 को ही एक आदेश जारी कर सब कुछ स्पष्ट किया जा चुका है, जिसके मुताबिक अगर कोई अफसर आईपीआर दाखिल नहीं करता है तो उसकी विजिलेंस क्लीयरेंस को रद्द किया जा सकता है। इसके साथ ही उन्हें पदोन्नति व विदेशों में पोस्टिंग से संबंधित जरूरी एनओसी देने से भी रोका जा सकता है।